Friday, August 23, 2013

पलाष (Butea Monosperma, Flame of Forest)


पलाष में भारत का धार्मिक, आर्युवेदिक एवं साहित्यिक महत्व है । इसे संस्कृत मे किंषुक कहते है । आधुनिक विज्ञान इसे  Butea Monosperma बूटी मोनास्पर्मा द्ध के नाम से जानता है । मराठी में इसे पळस कहा जाता है । अंग्रजी मे इसे  Parrot Tree  कहा जाता है ।  पंजाबी, बंगाली, गुजराती, उर्दू और भारतीय भाशाओं मे इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है । भारत के सभी हिस्सों मे यह भरपूर मात्रा में पाया जाता है । रविद्रनाथ टेगोर की कविताओं मे इसका बहुत वर्णन मिलता है । पंजाबी लेखक श्री हरजिन्दर सिंह ममबूब ने झनां की रात में इसका वर्णन किया किया है । यह वसंत के मौसम खिलता है, इसे प्रेम का प्रतीक माना गया है । संस्कृत लेखक श्री जयदेव ने अपने ग्रंथ गीता गोंविन्दम मे इसे प्रेम करने वालों के हृदयों का चोट पहुचाने वाला बताया है।         
                                   
मध्यप्रदेष, उत्तर प्रदेश, झारखंड मे यह राज्य फूल (State flower) के पदवी से विभूषित है । इसके नाम पर भारत के शहर पिलाषी का नाम रखा गया है । यहाॅ पर सुप्रसिद्ध पिलाषी का युद्ध हुआ था । यह होली के समय खिलता है । इसके  फूल बहुत मोहक होते है। इनका रंग केसरिया होता है । होली के समय पलाश फूलो से सारा भारत वर्श खिल उठता है ।  पलाश के फूल सर्दी की समाप्ति एवं गर्मियों का प्रारंभ दर्शाता है । 

१. धार्मिक महत्व
शिव जी एवं पार्वती जी एक समय एकांत मे भ्रमण कर रहे थे, अग्नि देव ने इस भ्रमण में अवरूद्ध डाल दिया जिस कारण अग्नि देव को श्राप के कारण पृथ्वी पर पलाश रूप धारण करना पडा । तेलंगाना क्षेत्र में इसके फूल महाशिव रात्रि मे भगवान शिव को चढाये जातें है । केरला में ब्राम्हन इसे अग्निहोत्र अनुष्ठान में प्रयोग करतें है । यह वातावरन का शुद्ध करने लिये किया जाता है । मध्यप्रदेष के जबलपुर क्षेत्र में इसे छियोला के नाम से जाना जाता है ।  पलाष के पत्तो मे भगवान को भोजन परोषा जाता है । शादियों मे इन्ही के पत्तों सभी लोग भोजन करते है । पितृ पक्ष मे पित्रों को यही पलाष के पत्ते थाली के रूप में दिये जाते है । कोई सामूहिक भोजन व्यावथा में इन्ही पत्तों का योगदान होता है ।

२. आयुर्वेदिक महत्व 
यह लेख विषेश रूप से पलाष के आयु आयुर्वेदिक महत्व को ही ध्यान के रखकर लिखा गया है। मैने गाॅवो मे सामूहिक भोजन पलाष के पत्तो से बने थाली, प्लेट मे करते है एवं क्योंकि मेरी भूमि गांवो से जुडी है तो मैने भी इनका प्रयोग किया है । मेरे मन मे सदैव यह प्रश्न रहा कि यह भोजन पलाष के पत्तेा पर ही क्यों दिया जाता है ।  लेख लिखने पहले मेरे बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो गये है । षायद इस लेख को पडने के बाद आप प्लाटिक की थाली, प्लेट के स्थान पर पलाष के पत्तो से थाली, प्लेट का प्रयोग करे । हमारे पूर्वज बहुत ही बुद्धिमान थे इसिलिये उन्होने पलाष को हमारे परंम्परओ से जोड दिया ताकि स्वथ्य एवं निरोगी रह सकें।  अब कार्य कोई भी हो दुख या खुशी पलाष का महत्व कम नही होता है ।

इसका प्रयोग आयुर्वेद के साथ यूनानी एवं होमियोपेथी चिकित्सा पद्धतियों मे भी होता है । आयुर्वेद मे इसे वात एवं पित्त का समन करने वाला बताया गया है । इसके अलग अलग भाग विभिन्न रोगों का समन करने में सहायक होतें है । यह सूक्ष्मजीवविरोधी (Anti MicroBiol) , प्रतिजीवाणु(Anti Bacterial), फफूद विरोधी(Anti Fungal),  रक्त मे सुगर की मात्रा कम होने वाली बिमारी(HypoGlycemia) शरीर की सफाई करने वाला तत्व (Astrigent),  बलवर्धक औषधि(Tonic) कामोत्तेजक (Aphrodisiac),    मूत्रवर्धक(Diuretic).  आगे हम उसके प्रत्येक भाग का प्रयोग विधिवत बताने का प्रयास  प्रयास करेगे ।

३. पलाष के फूलों का उपयोग

३.१ सूजनः- 
यह एक आम समस्या है जिसका सामना सभी व्यक्तियों को करना पडता है । सूजन को ठीक करने के लिय पलाश के फूलों का प्रयोग किया जा सकता है ।

विधिः-
आप पात्र ले उसमें पानी डालें, इसके बाद पात्र के मुह को सूती कपडे से बांधे  । उस कपडे पलाश के ताजे अथवा सूखे फूलों को डाल दें ।  अब इसे गर्म होने के लिये रख दें । पर्याप्त गर्म होने पर इसे सूजन वाले स्थान पर बांध लें । यह समान्य चोट के साथ साथ गठिया रोग की चोट ठीक करने समर्थ है ।

३.२ श्वेत प्रदर/मूत्रकृच्छ/अश्मरीः-
श्वेत प्रदर माताओं एवं बहनों के होने वाले रोग होते है । जो माताओं एवं बहनो की शारिरिक बल को घटाता है । इसे अग्रेजी डाॅ0 Leukorrhoea  के नाम से जानते है । इसे आम भाषा मेंwhite discharge  भी कहा जाता है ।

मूत्रकृच्छ/अश्मरी यह रोग पुरूषों को होता है । इस रोग में बूंद  बूंद करके कष्ट से पेशाब होता है । इसे अंग्रजी में strangury कहा जाता है ।

विधिः- रात्रि में 100 से 200 ग्राम तक पानी ले उसमें थोडे से पलाश के फूल डालें , यह फूल रात भ पानी में रहने दें । इस प्रकार फूलों के गुण पानी में आ जावेंगें । यह पानी सवेरे उठ कर खाली पेट पी लेवें । यह पानी सो कर उठने के बाद लगभग 30 मिनटो बाद पियें । इसका स्वाद कसेला होता है ।

३.३ स्वप्नदोषः-
इसे अंग्रजी  में Spermatorrhoea कहा जाता है । जब बार बार आवांछित रूप से जब शरीर से वीर्य का उसखलन अथवा निकलता होता है । तब हम उसे स्वप्नदोष कहतें है ।

विधिः-
ताजे पलाश के फूल ले एवं उसका रस निकाल लें । प्रत्येक दिवस सोने से पहले लगभग 20 इसकी ग्राम मात्रा ग्रहण करें । इसका उपयोग स्वयं के अनुभव के आधार बंद कर दें ।



--http://rajanjolly.hubpages.com/hub/Butea-monosperma-Flame-Of-the-Forest-Or-Palash-Some-Uses-And-Health-Benefits

--https://en.wikipedia.org/wiki/Butea_monosperma

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