Sunday, December 28, 2014

राष्ट भाषा संस्कृत में वाहन अंक प्रदर्शिका

मेरा जन्म मध्यप्रदेश में हुआ है । इसिलिये मेरी मातृभाषा हिन्दी है। मै अंग्रेजी जानता हूॅ एवं अंग्रेजी भाषा में पढ, लिख एवं बोल सकता हॅू । बहुत समय तक नागपुर में रहने के कारण में रहनें के कारण मराठी भाषा समझ सकता हॅू । वर्तमान में संस्कृत सीखने का प्रयास कर रहा हूॅ ।  मेरा पूरा मत है कि  संस्कृत को भारत राष्ट भाषा होना चाहिये । क्योंकि संस्कृत ही वह भाषा है जो सम्पूर्ण भारत  में विराजमान है एवं संस्कृत भाषा का विश्व में एक अलग ही स्थान है । यह भाषा भारत के प्रत्येक कोने उपस्थित है । विभिन्न संस्थाओ द्वारा इसका प्रचार प्रसार भी किया जा रहा है । 
परिवहन विकास मंत्रालय इसमें बहुत महत्व का कार्य कर सकता है । अभी वाहन नं प्लेट अंग्रजी भाषा में होती है । कोई कोई भाषा प्रेमी इसें भारतीय भाषाओं में स्वेच्छा के अनुसार लगा लेता है । परंतु मेरा मत है वाहन नं प्लेट को या संस्कृत में होना चाहिये या फिर स्थानीय भाषा में होना चाहिये । इसके लिये दो उपाय किये जा सकतें है कि जो गांडियां राष्टीय परमिट की हो उनके नं संस्कृत में होना ही चाहिय एवं जो वाहन राज्य के परमिट रखतें हो उन्हे राज्यीन भाषा में वाहन नं प्लेट होना चाहिये । इससे संस्कृत को राष्टीय भाषा के रूप में विस्तार मिलेगा एवं स्थानीय भाषा को भी उसका उपयुक्त स्थान प्राप्त हो सकेगा । इस कदम से कुछ अंगे्रजी भाषा के विद्वामानों समस्या हो सकती है परन्तु इन बुद्विजीवियों को एक से ज्यादा भाषाओं का ज्ञान होता है  इसिलिये इन्हे इस प्रकार की कोई समस्या का नही आना चाहिये । 
अभी तक यह देखा गया है कि डा. जो दवाईयां लिखते है उनके पदार्थ अंग्रेजी भाषा में लिखे जातें है । एवं डा. भी दवाईयां अंग्रेजी में लिखतें परंतु वास्तविकता यह है कि अभी बहुत बडा भाग अंगे्रजी जानता ही नहीं है अत इस प्रकार से डा. द्वारा लिखी गयी दवाईयों से लोग अनविज्ञ रहतें है । अतः सरकार को दवाइयों के पदार्थ की जानकारी संस्कृत एवं क्षेत्रीय भाषा में ही होना चाहिये । यह जानकारी दोनो ही भाषाओं मे होनी चाहिये ।
अब सोचने की बात यह है कि क्या लोग विरोध नही करेंगें तो अगर संस्कृत के साथ स्थानीय भाषा को महत्व मिले तो तथाकथित अंगे्रजी भाषा के समर्थक जो कि क्षेत्रीय भाषाओ का नाम लेकर वास्तव मुख्य रूप से अंग्रेजी का समर्थन करतें है । इन समर्थकों को विरोध करने का नया तरीका निकालना पडेगा ।  एवं उसको भी तार्किक करने के लिये बहुत परिश्रम की आवश्यता होगी । 

Tuesday, December 9, 2014

सांसद आदर्श गा्रम योजना का मर्म एवं राजनीति

प्रधानमंत्री आदर्श गा्रम योजना कहें या सांसद गा्रम विकास योजना या और कुछ भी । इन योजनाओ का उददेश्य भारत में गा्रमों को मुख्य धारा से जोडना है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने इस योजना का शुभारंभ जय प्रकार नारायण के जन्म दिवस के अवसर पर किया है। उनका उदद्ेश्य बहुत ही स्पष्ट रूप  से दिखाई दे रहा है कि वह क्षेत्र के लिये किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को गा्रम का उत्तरदायित्व देना चाहते है। किसी भी योजना को बनाते समय उसमें कमियां निहित होती है। परन्तु उसके क्रियान्वयन के समय उसकी कमियों को पता कर उसका निराकरण कर दिया जाता है। भारत के शासकीय तंत्र एवं प्राईवेट तंत्र में यही अंतर है। समान्यतः भारत में योजना बनने के बाद उसे भ्रष्टाचार की बलि चढनेे के लिये छोड दिया जाता है। इन योजनाओ के लिये सीधे तौर पर कोई एक व्यक्ति उत्तरदायी नही होता है। दूसरी बात यही कि इन योजनाओ को पहुचानें के लिय कोई जिम्मेदार कोआर्डिनेटर भी नहीं होता है। 

प्रधानमंत्री का उददेश्य इन्ही दो कमियो को पूरा करने का है । पहला इन सभी योजनाओं का गा्रम तक पहुचाने कि लिये एक जिम्मेदार व्यक्ति को ढूढना । इसके लिये उन्हे क्षेत्र के सांसद से बेहतर कौन मिलता है । अब गा्रम के लोगो से सांसद को स्वयं मिलने जाना होगा जिससे गा्रम की वास्तविक स्थिति का भी अवलोकन कर सकता है। अतः क्षेत्र का सांसद इसके लिये सबसे योग्य व्यक्ति है। दूसरा कोआर्डिनेटर की कमी को पूरा करना है। यह सारी योजनाओ को गांव का अनपढ एवं अजाग्रत गा्रम प्रधान ग्रामवासियो तक पहुचा पाये इसकी संभावना बहुत कम होती है । इसके अतिरिक्त समान्यतः गा्रम प्रधान ही वह व्यक्ति होता है जो गा्रम के धनी व्यक्ति से मिलकर भ्रष्टाचार में लिप्त होकर इन योजनाओ का पैसा हडप करने में जरा भी संकोच नहीं करता है। अब सांसद गा्रम प्रधान से सीधे जबावदेही कर सकता है। 

आज 10 दिसंबर 2014 के अनुसाद 206 सांसदों ने गा्रम गोद नही लिया है। इनमें से विभिन्न दलों के राजनीतिज्ञ सांसदों ने इस योजना पर संदेह उठाया है ।  इसमें कांग्रेस के  वीरप्पा मोईली, सपा के शिवपाल यादव, सीपीएम के सीताराम येचुरी आदि प्रमुख है। इनका योजना के प्रति विश्वास नही है । परंतु इनका विरोध प्राकृतिक न दिखकर राजनीतिक दिख रहा है । जिस कारण से इन लोगो को अगले चुनावों भारी हानि उठानी पड सकती है। क्यांेंकि भाजपा एवं सहयोगी दलों के सांसद गा्रमों को गोद लेकर उनके विकास का कार्य प्रारंभ कर देगे एवं समय ऐसा आयेगा प्रत्येक गा्रम के लोगों को विकास भावना जाग्रत हो जायेगी । जिस कारण इस योजना की गति दुगनी से तिगुनी भी हो सकती है । परन्तु विरोधी दलों के राजनीतिज्ञ सांसद केवल विरोध में ही समय गवां देगें । 

मोदी जी ने इस प्रकार एक ऐसा अस्त्र छोड दिया है कि अगर विरोधी दल के नेता उनकी इस योजना में भाग नही लेते है तो इसमें केवल और केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लाभ है क्योंकि अगले चुनावों में नरेंद्र मोदी जोर जोर से चिल्लाकर कहेगे हमने तो कहा था कि गांव गोद लो परन्तु इन सांसदों मन्शा ही नही थी कि उनके क्षेत्र किसी भी गा्रम का विकास हो । अतः यह बहुत आवश्यक है कि विरोधी दलो के सांसद इस योजना में भाग लें । भाग लेने के बाद इसकी कमियों  उजागर कर जनता के सामने रखें एवं इसके बाद मोदी सरकार पर निशाना साधें । 

इस योजना विरोध दलों के  सांसदों को व्यक्तिगत तौर पर भारी हानि पहुचाने वाला है । हो सकता है कि यह योजना आगे जाकर सांसदों का परफारमेंस पेरामीटर बनें एवं भाजपा के उम्मीदवारी भी इसी योजना के अनुसार तय हो परन्तु यह केवल मेरा अनुमान है।