Sunday, November 29, 2015

बालीबुड फिल्मों में शिक्षक का चित्रण एवं शिक्षक

आज का विषय वर्तमान समाज में शिक्षक की स्थिति को प्रदर्षित करने वाला है। या आप कह सकते है कि फिल्मों में बार बार शिक्षक का  अपमान  किये जाने से में आहत हॅू वह भी भारत देश् में जहां गुरूओ का स्थान ईष्वर से भी उपर है।
बहुत  ही प्रसिद्व फिल्म है जो कि राजकपूर के निर्देश्न में बनी हैं इस फिल्म का नाम है मेरा नाम जोकर कहतें है कि इस चलचित्र में बहुत ही गहराई है परंतु एक शिक्षक दृष्टि से यह फिल्म एक काला धब्बा है मुझे लगता है कि यह पहली फिल्म होगी जिसमें एक छोटे से लडके को अपनी वयस्क शिक्षका पर वासना भरी नजरों से देखता हुआ दिखाया गया है जिस देश् में शिक्षका को माता का स्थान दिया जाता है। क्या उस समय हजारो लाखों छात्रों के मन में इस चित्र का नाकारात्मक प्रभाव नही रहा होगा। क्या यह चित्र देखने बाद छात्रों के मन में शिक्षका के प्रति माता या बडी बहन के भाव रह पाये होगें। परंतु शिक्षक समाज द्वारा इसका विरोध करना बहुत ही दुखद है।
कुछ समय से   तो यह देखने में आता है जैसे फिल्मों में तो शिक्षकों को अपमानित करनें का वीणा उठा लिया है। इस प्रकार की फिल्मों में केवल छात्रों द्वारा शिक्षकाओं का वासना भरी नजरों से देखना सही बताया जाता है एव ंशिक्षकों को प्रताडित किया जाता है।  छात्रों द्वारा की गई हिंसा को सही दिखाया जाता है यह सारे अपमान फिल्म के हीरो द्वारा किये जाते है। क्या समाज में केवल इसी प्रकार उदारण देखने को आतें है। क्या शिक्षक अपना आत्म सम्मान भूल चुके है। जब इस देष का शिक्षक ही आत्म सम्मान खो  चुके है। तो आने वाली पीडी कैसे आत्म सम्मान की रक्षा कर पायेगी।
अभी बनी कुछ फिल्मों पर मै आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूॅंगाः
1. फिल्म का नाम है शमिताभ फिल्म में दक्षिण में स्टार धनुष, महानायक अमिताभ बच्चन,अक्षरा हसन आदि है। फिल्म की हीरो गंूगा है एवं वह कक्षा में जाता है शिक्षक उसे डांटता है वह शिक्षक को मारता है, बच्चे ताली बजाते है शिक्षक वहां से भाग जाता है। यही गूंगा बच्चा बाद में जाकर फिल्म का हीरो बनता है। एवं इसी बच्चे से बयस्क बने छात्र के लिये महानायक अमिताभ बच्चन उनकी आवाज देते हैै वह फिल्मों का बहुत ही बडा हीरो बनता है
संदेषः  इस फिल्म संदेश् जाता है कि अगर बच्चे या छात्र  शिक्षक पिटाई करे तो वह समाज में बहुत ही सम्मानीय स्थान पाता है।
2. फिल्म का नाम है हम्टी शर्मा की दुल्हानियां फिल्म में मुख्य कलाकार के तौर डेविड धवन सुपुत्र, आलिया भटट, आश्तोश् राणा है। फिल्म सीन है हम्टी  - फिल्म का हीरो शिक्षक को झूले पर लटकाता है एवं शिक्षक की भांजी छात्र को कहती है वह परीक्षा की कापी चेक करती है सबसे दयनीय स्थिति तब होती है जब फिल्म के अंत में इसी हम्टी लडके से शिक्षक की भांजी का विवाह होता है।

फिल्म समाज का दर्पण होती है।  यह दर्शक में मन में बहुत ही गहरा प्रभाव छोडती है बहुत सारी घटनाये फिल्मों में वास्तविक जीवन से जुडी होती है। छात्र जो फिल्म देखतें है वह फिल्म के उस हीरो जैसा बनना तथा दिखना चाहते है। इसके लिय छात्र एवं छात्राऐ ंनायकों एवं नायिकाओं के समान केश् संवारना, कपडे पहनना, जूत आदि धारण करतें है। चहरे पर लाली, बिन्दी आदि का प्रयोग करते है। यह मौलिक परिवर्तन जो फिल्म से आम जीवन तक आता हेै यह स्वीकार्य होता हैै  परंतु जब नकारात्मक चारित्रिक परिवर्तन फिल्मों से समाज तक आने लगे तो यह बहुत ही दुखदाई हो सकता है।

वर्तमान में फिल्में छात्रों का चरित्र हास एवं मानसिक हास का कारण बनी हुई है। जिसमें फिल्मों के नायक बहुत सारी बुराईयां होती है परंतु वह नायिकाओं का प्रिय होता हैं। वह शिक्षक एव शिक्षकाओं का अपमान करता है प्रताडना देता हैै परंतु वह अभी भी नायक हैै यही चरित्र छात्र महाविद्यालयों में अपनातें जा रहें है

समाज में शिक्षक का असम्मान पूरे समाज को नष्ट कर सकता हैै यह छात्र-अभद्रता महाविद्यालयों एवं िवद्यालयों से निकलकर आपके घर परिवार, विवाह कार्यक्रम, रास्तों एवं अन्य स्थानों पर पहुचतीं है। यह छात्र छात्राएं चित्रपट देखकर व्यवहार करते हैै। इस व्यवहार का प्रभाव उनके सम्पूर्ण जीवन मे होता है। मुझे उज्जैन की एक घटना याद आती है जब उज्जैन के विष्वविद्यालय में एक छात्र ने अपने ही शिक्षक के सर पर हाथ से मारा एवं उसके पष्चात् प्रध्यापक की मृत्यु हो गई, छात्र का राजनैतिक प्रभाव था वह कारागार से मुक्त भी हो गया क्या इस प्रकार का व्यवहार समाज में उचित हेै छात्र संघों के नेता शिक्षक पर हाथ उठायें, गाली गलौच करें एवं प्रताडित करें यह तो एक समान्य सी घटना हेै। जिसे शिक्षकभी बहुत निरसता से व्यवहार करता है एवं बगल में खडा पुलिस महकमा नौ दो ग्यारह हो जाता है। 

वर्तमान में शिक्षक का स्वाभिमान नष्ट हो चुका है शिक्षक केवल धन पिपासु बन कर रह गयें है। उनकी सारी क्षमताए केवल चर्चाओं तक सीमित हो गई है। क्योंकि जो स्वयं के सम्मान के प्रति जागरूक एवं एकजुट हों सके, वह समाज एवं छात्रों को देश् के लिये क्या एकजुटता एवं एकत्व का पाठ पढायेगा  फिल्मों में होने वाले भददे एवं अष्लील मजाको पर वह हंस कर उत्तर देता है एवं स्वयं को बहुत छोटा एवं हंसी का पात्र का समझता है। यह तो शिक्षक की विकृत मानसिकता या कहें गुलामी के लक्षण ही कहें जायेगे कि वह बार बार अपमानित  किये जाने पर भी  किसी फिल्म/नाटक  के हास्य अभिनेता की तरह व्यवहार करता है।

शिक्षक को स्मरण करना चाहिए कि  शिक्षको का इतिहास गौरवमयी है जब धनहीन द्रोणाचार्य ने अर्जुन, भीम, आदि महावीरो का निर्माण किया हमें स्मरण करना चाहिए परषुराम जी को जिन्होने कर्ण जैसे महादानी का निर्माण किया। हमें याद करना चाहिए ऋषि संदीपनी को जिन्होने कृष्ण जैसे राजनीतिज्ञ का निर्माण किया हमें याद करना चाहिए उस चाणक्य हो जिसके पास  शरीर में दो कपडे एवं मस्तक में खुली हुई शिखा  के अतिरिक्त कुछ नही था परन्तु जो बडे बडे राजा/महाराजाओं की सेना नही कर सकी वह केवल केवल एक शिक्षक ने किया और सिंकदर को भारत से लौटने पर विवश् कर दिया
क्या वर्तमान शिक्षक वर्ग स्वयं को चाणक्य का वंश्ज नही मानता जो बार बार किये गये अपमान पर गांधी के तीन बंदन बन कर बैठ गया हैै। किसी के देखने से, किसी के सुनने से और किसी के कहने से सत्य बदलता नही है। इस प्रकार अनीति कार्य करने के कारण ही षिक्षक अपना अस्तित्व एवं सम्मान खो चुके है।

चाणक्य
शिक्षक समान्य नही होता है प्रलय एवं निर्माण दोनो ही शिक्षक  की गोदी में खेलती हैै


Sunday, July 5, 2015

मध्य प्रदेश् का व्यापमं घोटाला


मध्य  प्रदेश् इन दिनो बहुत ही नकारात्मक कारणांे लिये चर्चा में है । यह बहुत ही दुखद है कि मध्य  प्रदेश् जो कि प्राकृति संसाधनों से धनी है एवं भारत का हृदय है परंतु आज वह व्यापमं घोटाले के कारण लगातार चर्चा में है।  इस घोटाले से जुडे लागो की लगातार रहस्यमय होने वाली मौतों ने प्रदेष में रहने वाले लोगों की सुरक्षा पर ही प्रष्न खडा कर दिया है।

  जिस प्रकार एक एक कर इस घोटाले से जुडे लोगों की मृत्यु हो रही है यह किसी भी प्रकार से स्वाभाविक नही दिखता है। इस घोटालें में होने वाली मृत्यु के कारण प्रदेश्  में भय का माहौल खडा हो चुका है । प्रदेश् सरकार इस घोटाले को लेकर गंभीर होती दिखाई नही पडती है। आज रविवार के दिन आज तक के पत्रकार अक्षय एवं डीन अरूण श्र्मा की एक ही दिन होनी वाली मुत्यु तो बडी भयंकर एवं विभत्स प्रतीत होती है।
यह मृत्यु स्वाभाविक या कोई शडयंत्र यह तो पोस्टमार्टम रिर्पोट आने के बाद ही पता चलेगा परन्तु इसे पत्रकारों की सुरक्षा के लिये बहुत ही खतरनाक माना जयेगा । यह घटना अब एक समान्य घटना से उठकर, अभिव्यक्ति की आजादी पर आ गयी है ।

व्यापमं घोटाले की निश्पक्ष सीबीआई जांच होनी चाहिए ताकि सत्य सभी के सामने आ सके। सभी पार्टियो को इस घोटाले के राजनीति करण से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा कर वह समाज का अहित करेंगें एवं गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखा कर  स्वयं का स्तर ही निच गिरायेगंे।

Tuesday, May 26, 2015

कंगना रनाउत जी के सत्य की सराहना आवश्यक है

आज मुझे कहने में कोई दुख नही होता है कि फिल्म इडस्टी इतनी गिर गई है कि वह पैसे के लिये इस देश के भविष्य से भी खेल रही है। इसके बडे बडे स्टार ऐसी ऐसी गंदी एवं खराब वस्तुओं का विज्ञापन के ललाईत हो रहें है जो बच्चों की सेहत के लये खराब है। इसकी सूची बहुत लंबी परंतु मै कुछ नाम तो लुंगा ही
1. मैगी का विज्ञापन  अमिताभ जी करते है। जो बहुत ही दुख की बात है। क्योंकि उन्हे यह देश भगवान की तरह पूजता है और वह ऐसी वस्तुओ का प्रचार कर रहें है।
2. शाहरूख खान फेयर एण्ड हेडसम का विज्ञापन करते।
3. महेद्र सिंह धोनी एवं रणवीर कपूर पेपसी का विज्ञापन करते है। क्या उन्हे इस देश ने कुछ नही दिया जो वह धन के लिये किसी हानिकारक वस्तु का विज्ञापन कर रहे है।

और भी ऐसी कई नाम है। उन्हे ऐसा करने से पहले अपने परिवारिक संस्कारों के बारें में सोचना चाहिये। और इस प्रकार की हानिकारक वस्तुओं के प्रचार से बचना चाहिऐ।

आपने फेयरनेश क्रीम का विज्ञापन मना किया  एवं सही संदेश समाज को देने का प्रयत्न किया है। आज कंगना रनाउत जी ने ऐसी वीरता की पेशकश की जो वाकई सराहनीय है। कंगना जी जो आपने किया है वह सच में गर्व करने योग्य है। आपने सिद्ध किया कि फिल्म इडस्टी केवल नाच गाने का स्थान नही है वह देश सेवा के लिये भी सोच सकतें है। आपने हम सदा ही आभारी रहेंगे कि आपने पैसे के लिये अपने आत्मा को बेचा नही है।

जो लेाग कहतें है कि आपसे अंग्रेजी नही बनती है उन्हे तो चुल्लु भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिऐ कि इतनी सारी देशी भाषा उपलब्ध होने पर भी अंग्रेजी भाषा का सहारा लेना पडता है। कंगना जी आपको गर्व होना चाहिऐ कि आप अंग्रेजी भाषा के उन चाटुकारों से बहुत ही उपर है जो जिंदगी भर हिंदी की खातें है और उन्हे हिन्दी बालने पर शर्म महसूस होती है ।

मै आपका बहुत बडा फैन तो नही हूॅ परंतु निश्चित ही आपके सत्य बोलने से बहुत ही प्रभावित हूॅ। मै ईश्वर से कामना कंरूगा कि आपका भविष्य उज्जवल हो ।

Thursday, April 16, 2015

महान महाराणा प्रताभः भारत की शान

आज समाचार में देखा कि अकबर के नाम से महान शब्द हटा लिया गया है। एवं महारणा प्रताप के महान शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। यह निर्णय राजस्थान बोर्ड के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने लिया है। इसके साथ उन्होने यह निर्णय लिया है कि पुस्तकों में आर्यभटट एवं भास्कराचार्य के बारे में भी पढाया जायेगा। इसके पश्चात् कुछ लोग पाते मचाये गये कि पाठयक्रम का भगवाकरण किया जा रहा है। अगर सही इतिहास पढाना भगवाकरण है तो भगवा करण अवश्य होना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा के अंग्रेजी करण से बहुत अच्छा है। अगर सरकार द्वारा कोई सही निर्णय लिया गया है कोई मीडिया इसे गलत संदर्भ में दिखाती है तो समझ लें कि अब समाचार पत्र या चैनल के दिन भर आयंे है । क्योंकि अब वह समय नही रह गया कि आप समाचार चैनलों में कुछ भी दिखाते रहे और आम जन उसे स्वीकार कर लेगें। इस बात को यही छोडते है।

राजस्थान सरकार इस निर्णय को साम्प्रदायिक कहना बहुत बडी मूर्खता होगी क्योकि इतिहास में महाराण प्रताप का स्थान अकबर से बहुत बडा है। अकबर भले दिल्ली का शासक रहा हो परंतु उसने भारत में रहने वाली आम जनता को युद्ध में जीतने के बाद प्रताडित भी किया है। सुनने में तो यह भी आया है कि तानसेन, बीरबल आदि उनका बदलकर मुस्लिम बनना पडा तब कही जाकर उन्हे अकबर के दरबार में स्थान मिला । अगर अकबर को संधि करनी ही थी विभिन्न रानियों विवाह क्यों किया । वह बहन मानकर भी संबंध बना सकता था । जैसे उसके पिता हुमायू ने किसी हिन्दू रानी को अपनी बहन माना एवं उनकी रक्षा के लिये वहां गये भी थें । दूसरा महाराणा प्रताप से युद्ध जीतने के अकबर ने 10000 आम जनका की हत्या की जो कि वर्तमान में युद्ध अपराध के नाम से जाना जाता है तो फिर इतने बडे युद्ध अपराधी को महान कैसे कहा जा सकता है। यह तो इतिहास कारों द्वारा बडा निराशा जनक विश्लेषण जान पडता है।
दूसरा भाग जो कि वर्तमान में कुछ लोगों की आंखो में चुभ रहा है कि न्यूटन को क्यो नही पढाया जा रहा है तो भाई जब साक्ष्य मिल चुके है कि केल्कुलस न्यूटन के जन्म से पांच सौ वर्ष पहले भारत में उपयोग कर रहे थे तो यह सिद्ध करने की आवश्यकता ही नही है कि केल्कुलस न्यूटन से पहले ही आ चुका है । अब मुझे यह तर्क समझ में नही आता है कि इसमें भगवाकरण कहां है। यह निहित परिवर्तन है जो नई खोजो अनुसार परिवर्तित किया जा रहा है। मुझे नही लगता कि इसमें कोई भी राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि अभी कहीं भी चुनाव नही चल रहें ।

मुझे तो बडा आश्चर्य हो रहा है कि मध्य प्रदेश, छश्तीसगढ, गुजरात आदि क्षेत्र क्यो अभी तक सो रहें है। इन्हे भी यह परिवर्तन कर लेना चाहिए। परंतु इन क्षेत्रों के नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर ही नही उठ पा  रहे है । उन्हे तो बस शिवराज सिंह चैहान या रमन सिंह के नाम का पोस्टर उचा करना है। देश या समाज हित में सोचने के लिये उनके पास समय ही नही है।तभी तो इतने वर्षो से शिक्षा नीति में कोई भी परिवर्तन नही हुआ है। इस बात के लिए मेै मध्य प्रदेश सरकार की कडी आलोचना करता हूॅ।

Sunday, April 12, 2015

भारतीय देशी गौ वंश संवर्धन एवं संरक्षण में इंटरनेट उपलब्ध साहित्य का महत्व


मनीष तिवारी (1) , ऋषभ परोची (2)
(1) कम्प्यूटर विज्ञान एवं अनुप्रयोग विभाग, सेंट अलायसियस महाविद्यालय (स्वा0)
tiwarikmanish@gmail.com
(2) कम्प्यूटर विज्ञान एवं अनुप्रयोग विभाग, सेंट अलायसियस महाविद्यालय (स्वा0)
1. परिचय
किसी भी जाग्रति अभियान का मूल मंत्र लोगो से जुडना एवं उन्हे विषय से अवगत कराना होता है। वर्तमान परिपेक्ष में भी भारतीय देशी गौ वंश संवर्धन एवं संरक्षण का मूल आधार भी यही है। भारतीय देशी गौ वंश संवर्धन एवं संरक्षण से जुडे लोगो का प्रयत्न होता है कि वह अधिक से अधिक लोगो से जुडे एवं गौ के वैज्ञानिक, समाजिक, आर्थिक पक्षो से आम जनों को अवगत कराये। देशी गौ वंश  से जुडे  विभिन्न पहलुओं को जानने के लिये गाय से जुडे साहित्य की आवश्यकता होती है। जब इलेक्टानिक उपलब्ध नही थे तब देशी गौ वंश से संबंधित साहित्य उपलब्ध तो था परंतु यह बहुत ही सीमित लोगो की पहुंच में था। जिस कारण यह महत्वपूर्ण एवं अमूल्य जानकारी केवल मौखिक रूप से ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक जाती थी जिस कारण उसमें त्रुटियां आना भी स्वाभाविक है । समाचार पत्रों में भारतीय देशी गौ वंश संवंर्धन एवं संरक्षण के प्रति एक अरूचि सी दिखाई देती है एवं  समाचार पत्रों में यह औपचारिकता के कारण ही यदा कदा देशी गौ की चर्चा होती है। इसी प्रकार इलेक्टानिक मीडिया भी गौ संवर्धन एवं संरक्षण के प्रति उदासीन एवं विरोधी हीे दिखाई पडती है। समाचार चैनल भारतीय देशी गौ वंश गौ संवंर्धन एवं संरक्षण को किसी एक विशेष समुदाय से जोडकर दिखाते है जो कि अत्यंत दुखद है क्योंकि भी भारतीय देशी गायों से किसी को भी किसी प्रकार की कोई भी हानि नही होती है। 
भारतीय देशी गौ वंश गौसंवर्धन एवं संरक्षण को पाठशालाओं में कोई स्थान नही दिया गया है। पाठशालाओ में तो गाया को 10 अंको के निबंध तक ही सीमित कर दिया गया है । वर्तमान शिक्षकों से भारतीय देशी गौ वंश  की जानकारी छात्रों तक पहुंचाने की कल्पना करना व्यर्थ ही है क्योंकि उनमें से अधिकतर नगरीय परिवेश के होते है या फिर वह नगरीय परिवेश में जाना चाहते है। अतः वे दूध/दही/घृत उपयोग तो करना चाहतें है परंतु गौवर एवं गौमूत्र से दूर भागते है।क्योकि उन्हे इन विशिष्ट एवं सरलता से उपलब्ध औषधियों के बारे कोई ज्ञान नहीे होता है। वह इसे मात्र देव पूजा के लिये ही उपयोग करना चाहते है। परिहास की सीमा तब हो जाती है जब लोगो को जर्सी गाय / भैस के दूध की तुलना आम जनों द्वारा की जाती है । जबकि जर्सी गाय के दूध तुलना देशी गाय के दूध से करने का अर्थ है कि आप विष एवं अमृत की तुलना कर रहें है। इस प्रकार आमजनो के मध्य में गाय की सही वैज्ञानिक एवं समाजिक जानकारी प्राप्त होने के सभी साधन नष्ट हो चुके थे। देशी गाय से जुडा साहित्य होने पर भी जाग्रति का कार्य में असफलता हो गया था । जिसके नकारात्मक परिणाम हमें भुगतने पड रहें है। 
इस कठिन परिस्थिति से उबरने में इ्रटरनेट में उपलब्ध विभिन्न माध्यमों ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में इंटरनेट गौजाग्रति अभियान  की तीव्रता एवं गति प्रदान की है वह अभूतपूर्व है । इंटरनेट के माध्यम से गौ संबंधित जानकारी सरलता एवं सुगमता से उपलब्ध हो पा रही है । 
2 गौवंश से संबधित कुछ आंकडे 
भारत में गौवंश की वर्तमान स्थिति  बडी ही दयनीय है । इस परिपेक्ष में म्ै आपके समक्ष कुछ आंकडे प्रस्तुत करना चाहता हूॅ । इन आंकडो से अनुमान लगाया जा  सकता है कि भारतीय देशी गौ वंश  संवर्धन एवं संरक्षण की अत्याधिक आवश्यकता  है। सन् 1920 में भारत में 4 करोड 33 लाख 60 हजार गौंश था । 1940 में यह 13 करोड 76 लाख  50 हजार 870 गौवंश में था । इनमें लगभग 5 करोड संाड/बैल, 6 करोड गायें एवं ढाई करोड बछडे एवं बछियां थी। 2003 की जनगणना के अनुसार भारत में 18 करोड, 51 लाख, 80 हजार  532 गायेथी। इसमें से दो करोड विदेशी गायो की संख्या है। जिनका दूध जहरीला होता है। इसे पीने से हदय रोग, केंसर एवं महुमेह जैसे घातक एवं जानलेवा रोग होते है। सन् 1992 से 2003 के भारतीय देशी गौवंश की संख्या में लगभग 2 करोड 85 लाख की कमी आई । जो कुल देशी गौवंश आबादी का 18 प्रतिशत था । 
भारत में सन् 1951 में प्रति एक हजार व्यक्ति 340 गायें होती थी। 1951 में भारत में प्रति हजार व्यक्ति यह संख्या 278 रह गयी।  सन् 2000 आते आते  प्रति एक हजार व्यक्ति 110 गाये रह गयी । मेरे अंतिम आंकडा 2005 है जो बडा ही दुखी करने वाला है। 2005 में यह संख्या 110 से घटकर मात्र 90 रह गयी है। 
3. मुगलसाम्रज्य एवं गौहत्या
बाबर ने भारत पर आक्रमण प्राप्त कर विजय प्राप्त कर शासन किया।  परंतु एक मुस्लिम शासक होने पर भी उसने गौहत्या पर कडे कानून बनाये एवं गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया । इसके बाद आने वाले सभी मुगल शासको के शासन काल में भी गौ हत्या पर पाबंदी रही है । मैसूर के शासक हैदरअली एवं टीपूसुल्तान के शासन काल में भी गौ हत्या प्रतिबंधित थी । इसके शासन काल में गौहत्या करने वाले का सर कलम कर दिया जाता है।  ख्1,  
भारत  में गौहत्या प्रारंभ करने का पूरा श्रेय अंग्रेजों का जाता है । राबर्ट क्लाईव में सन् 1760 में न केवल गौहत्या प्रारंभ कराई बल्कि उसने भारत में शराबघर एवं वैश्यालय भी प्रारंभ कराये।ं मुस्लिमों कुरैशी समाज के लोगों को प्रताडित कर उन्हे गौहत्या के कार्य में जबरन लगाया।ख्2,  
4. इंटरनेट द्वारा पंचगव्य औषधियो/ गौशालाओ द्वारा निर्मित उत्पादों / शोधकार्या का प्रचार
गाय से पांच प्रकार के उत्पाद उत्पन्न होते दूध, दरही, घी, गौवर, गौमूत्र इन्हे ही पंचगव्य की संज्ञा दी गई है।  इनसे संबंधित बहुत सारा साहित्य/ चलचित्र आपको इंटरनेट पर उपलब्ध है। 
4.1 पंचगव्य औषधियोः इंटरनेट पर यदि आप पंचगव्य औषधियों के बारें में ज्ञान प्राप्त करना चाहते है तो आपको शब्द चंदबीहंअलं टंकित करना होगा । इससे पर आपको बहुत सारी जानकारी सहसा ही उपलब्ध हो जायेगी ।
4.2 गौशाला में निर्मित उत्पादः  भारत में लगभग 2500 गौशालाओं पंचगव्य उत्पादों का निर्माण करती है । यह औषधियों के साथ प्रतिदिन उपयोग में आने वाली लगभग सभी वस्तुओ का निर्माण करती है । इनमंे से बहुत गौशालाओं ने उत्पादों की जानकारी इंटरनेट पर डाली है । परंतु अभी भी सभी गौशालाएं नेट पर उपलब्ध नही है। इसका काई भी आंकडा मेरे पास उपलब्ध नही की कितनी गौशालाओ की उपलब्धता नेट पर है ।
4.3 गायो पर शोधकार्यः यह बडा ही महत्व का विषय है कि गायो पर क्या शोध कार्य चल रहें। इसमें गौविज्ञान अनुसंधान केंद्र देवलापार, कानपुर गौशाला, भीलवाडा गौशाला राजस्थान, डा जैन इंदौर, अकोला गौशाला आदि प्रमुख नाम है। Kamdhenu Urine (Fresh) Therapy in Cancer Patients: A Holistic Approach, Milk – A Preventive Promotive and Curative Approach, Evaluation of an indigenous technology product Kamdhenu against pathogens of soil borne diseases, Research Work Done on Godugdha, Research Work Done on Goghrita, Research Work Done on Gomaya Preparations, Research Work Done on Gomutra Preparations, Research Work Done on Gotakra Preparations, etc.[5]
4.4 विस प्रभावः सन् 1995 में मास्कों के पास सूजडल नामक नगर में डा मदन मोहन बजाज, मोहम्मद सैयद इब्राहिम एवं डां विजय राज सिंह ने बिस प्रभाव से अवगत कराया है । इस शोध के अनुसार प्राणियों की हत्या करने से ई0पी0 तरंगे (आइंसटीन पेन तरंगे) उत्पन्न होती है जो भूकम्प के लिये जिम्मेदार होती है। 
इस प्रकार की लगभग 65 शोधों की सूची आपकों भारतीय शासकीय वेवसाईट पर उपलब्ध है जिस वेबपेज पर आप देख सकते है ।   
4.5 इंटरनेट पर साहित्यः इंटरनेट पर वर्तमान लेखको पर लिखित साहित्य एवं पुराना दुर्लभ साहित्य दोनो ही उपलब्ध है। इंटरनेटर पर स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित अत्यंत दुर्लभ पुस्तक गौकरूणानिधि उपलब्ध है तो वर्तमान गौ विषय के विद्धवानो एवं शोधकर्ताओं का साहित्य भी उपलब्ध है । यूटूब पर उत्तम माहेश्वरी, डां अशोक जैन, राजीव दीक्षित, डिस्वरी चैनल के विडियों, गौशालो पर उपलोड वीडिया बडी मात्रा में एवं सरलता से उपलब्ध है। एवं इन्हे निशुल्क डाउनलोड भी किया जा सकता है। 
4.6 गौ से संबंधित सूचनाओं का प्रचार गौ से संबंधित सूचनाओं का प्रचार एवं प्रसार के लियं इंटरनेट एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। समाचार पत्रो एवं समाचार चैनलों के माध्यम सं संपादक या पत्रकार स्वयं का दृष्टिकोण लोगो के समक्ष रखता है परन्तु सुनने या देखने वाले इस पर प्रतिक्रिया नही दे सकता है। सोशल मीडिया ने इस बंधन को भी तोड दिया है । अब फेसबुक/टवीटर/ब्लागर आदि ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें आप जन को गाय के प्रति संवेदना एवं समर्थन व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान किया है। इसके द्वारा बहुत से व्यक्तियों द्वारा आधारहीन एवं तथ्यहीन बातों करने करने एवं खण्डन एवं विरोध भी किया जा सकता है ।
5 फेसबुक/यूटूब/गूगल पर उपलब्ध कुछ आंकडे
हमने गाय से संबंधित साहित्य की इंटरनेट पर उपलब्धा को समझने के लिये एक छोटा सा प्रयोग किया। हमने अलग अलग कीवर्ह को  फेसबुक, यूटूब एवं गूगल में प्रतिपादित किया तब हमंे निम्न प्रकार के आंकडे उपलब्ध हुऐ। 



हम सारणी में दिये गये आंकडों में स्पष्ट  रूप से देख सकते है कि भारतीय देशी गौ से संबंधित साहित्य बहुत मात्रा में उपलब्ध है। 
6 उपसंहार
इंटरनेट ने भारतीय देशी गौ वंश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके माध्यम से गौशाला अल्प धन व्यय करके वस्तु ओं को प्रचार रही है । वीडियों  एवं  आडियों  माघ्यमों से असाक्षर लोगो तक भी जानकारी बडी सुलभ माध्यम से पहुचाई जा सकती है। बहुत सारी जानकारी निशुल्क ई बुक के माध्यम से उपलब्ध है। ब्लाग के माध्यम से समान्य अपना इंटरनेट पर विश्व के सामने बडी ही सरलता एवं निशुल्क रख सकता है। 
7. संदर्भ सूची
1. सुभाष पारलेकर, देशी गौ - एक कल्पवृक्ष खेती कुषि संस्कृति, संस्करण - द्वितीय,जीरो बजट प्राकृतिक शोध तंत्र, अमरावती, 2005
5.    http://govigyan.com/Pages/research.aspx
6.    http://ayushportal.nic.in/pgavya.htm  

Thursday, April 9, 2015

Suggestion to MyGov Portal

यह भारतीय दृष्टि से काफी कठिन कार्य है । यदि पाठशाला शिक्षा की बात की जाये तो यह कार्य और भी कठिन हो जाता है। क्योंकि यही वह शिक्षा है जो किसी के भी जीवन में बहुत अधि प्रभाव डालती है। इस कई प्रकार के मत चलते है । मै अपने कुछ समस्याओं को पहले पटल पर रखना चाहता हूॅ ।
1. भारत में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण रूप से व्यवसायिक हो चुकी है। यह केवल पाठशालाओ द्वारा व्यवसायिक नही की गई है बल्कि माता एव ंपिता के द्वारा व्यवसायिक की जा चुकी है।
2. भारतीय प्राथमिक स्तर की शिक्षा बहुत महंगी एवं अनुपयागी भी हो चुकी है।
3. उत्तम प्राथमिक शिक्षा के नाम पर छोटे छोटे बच्चो की वर्तमान नष्ट किया जा रहा है ।
4. गरीब एवं मध्यम वर्ग जो पढाई को महत्वपूर्ण मानते है उनकी पहुच से प्राथमिक शिक्षा बाहर होती जा रही है ।
5. प्राथमिक स्तर के छोटे छोटे छात्रों को उत्तम शिक्षा के नाम पर उनके घरो से बहुत दूर दूर पढने भेजा जाता है जिस कारण उनका बचपन एक मशीनी एवं बहुत अच्छा कृतिम एवं भावना रहित हो चुकी है ।
6. प्राथमिक शिक्षा में किसी भी प्रकार की स्वाथ्य से संबंधित कोई भी प्रकार जानकारी नही दी जाती है । जो बहुत ही दुखद है।
7. प्राथमिक शिक्षा में किसी भी प्रकार की यातायात से संबंधित कोई भी जानकारी नही दी जाती है।
8. प्राथमिक शिक्षा से महंगी महंगी कापी पुस्तको का प्रचलन अत्यंत दुखकारी है ।
9. प्राथमिक शिक्षा के स्कूलों का समय भी बहुत ही दुखकारी है। किसी भी विज्ञान के अनुसार बच्च के मानसिक विकास के नींद आवश्यक होती परंतु सुबह पाठशाला होने के कारण यह नही हो पा रहा है।
10. प्राथमिक स्तर पर बच्चो पुस्तकें निजि स्कूलो द्वारा स्वयं निश्चित की जा रही है जो कही से परिवेक्षित नही की जाती है।
11. प्राथमिक शिक्षा से ही बच्चों को उत्तम शिक्षा के नाम टीवी में आने वालेे सिरिलय आदि के प्रश्न पूछ जाते है जो कि अशाभनीय है ।
12. प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर किसी प्रकार की वर्तमान में घटित देश प्रेम से संबंधित घटनाओं वर्णन नही मिलता है।

अब कुछ समस्ओ के साथ में अपने  सुझाव रखता हूॅ

1. प्राथमिक शिक्षा का केवल देश व्यापी एक बोर्ड होना चाहिए।
2. प्राथमिक शिक्षा केवल सरकारी स्कूलों में ही पढाई जानी चाहिए। ताकि इसके व्यवसायी करण पर राक लग सके।
3. प्राथमिक शिक्षा में केवल कर्मठ एवं शिक्षक ही लाने चाहिए उनकी समीक्षा भी होते रहना चाहिए उन्हे अयाग्य पाये जाने पर हटा देना चाहिए।
4. प्राथमिक शिक्षा में केवल स्लेट एवं चाक का प्रयोग होना चाहिए।बच्चो का मौखिक ज्ञान एवं रचनात्मकता पर अधिक ध्यान होन चाहिय न की उसक अंको पर।
5. पूरे देश में एक की प्रकार का पाठयक्रम होना चाहिए ताकि पाठशाला बदलने पर बच्चों को किसी प्रकार कोई असुविधा न हो ।
6. जो बच्चे प्राथमिक से माध्यमिक में जा रहे है केवल योग्य ही हों एवं इस स्तर पर यदि कोई बच्चा असफल होता है तो उसके जीवन इसका   कोई भी प्रभाव/नौकरी आदि में नही आना चाहिए।
7. बच्चो की शिक्षा से कम्प्यूटरी करण हटा देना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे की तर्क शक्ति पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पडता है । यह बात विज्ञान भी स्वीकार करता है ।
8. भारत बहु भाषीय देश है इसिलिए मातृभाषा के अतिरिक्त उसे अपने देशी एक अन्य भाषा का अध्धयन भी इसी प्राथमिक शिक्षा में होना ही चाहिए ताकि उसमें देश अन्य हिस्सो संास्कृतिक जानकारी हो सके एवं उस विशेष क्षेत्र अपनत्व की भावना भी उत्पन्न हो ।
9. प्राथमिक पाठशालाओं का समय 10 बजे के बाद हो ताकि बच्चे रचनात्मक कार्याे के लिये बहुमूल्य सुबक का आनंद ले सके ।
10. जैसे बर्तमान मध्यप्रदेश में गर्मियों में भी पाठशलाऐ लगायी जाती एवं पाठशला समाप्त होने स्कुलो द्वारा बहुत अधिक ग्रह कार्य दे दिया जाता है जिससे का रचनात्मक एवं मानवता का पहलु बिलकुल समाप्त हो गया ।


Tuesday, March 31, 2015

सायना नेहवाल एवं श्रीकांत की मीडिया द्वारा अनदेखी

भारत देश वेवजह ही क्रिकेट के लिये दिवाना है । परतु सत्य यह है कि क्रिकेट को जितना समर्पण भारत के युवाओं ने दिया है उतना किक्रेट इस देश का लौटा नही पाया है ।  इस वर्ष 2015 में भारत विश्व कप में आस्टेलिया से हार गया । समाचार पत्रांें एवं समाचार चैलनों वेवजह ही  विषय को महत्व दिया है । यह भारत के युवाओं के साथ छल है । क्योंकि क्रिकेट में हारना हमारें लिये आत्म सम्मान की बात नही है परंतु क्यों, क्योंकि जो टीम वल्र्ड कप में खेलती है वह भारत देश के लिये नही, बीसीसीआई नाम की व्यक्तिगत संस्था के लिय खेलती है । यह बात स्वयं बीसीसीआई उच्चन्यायालय में हलफनामा दायर कर कही है । 
भारत विश्वकप में हार गया उसका दोषी विराट कोहली एवं अनुष्का शर्मा ठहराया गया जो कि गलत है। भारत विश्वकप में हार गया है और समाचार पत्रांें एवं समाचार चैलनों ने उसे राष्टीय शौक के रूप दर्शाया गया । जो कि केवल और केवल भारतीय समाचार चैलनों की तुच्छ हरकत के रूप में ही देखा जा सकता है । क्योंकि यह आम घटना है । 
जिस दिन किकेट विश्वकप में आस्टेलिया ने न्यूजी लैड को हराया उसी दिन भारतीय इतिहास में दोबडी घटना हुई । जो भारतियों को आत्म सम्मान से ओतप्रोत कर देती है । सायना नेहवाल एवं श्रीकांत  ने दो बडी खिताबी जीत प्राप्त की । सभी समाचार पत्रों एवं न्यूज चैलनों ने इस विजय को समान्य विजय भी नही बताया । यह समाचार एक लाईन में बताकर समाप्त कर दिया । 
मैने दैनिक भास्कर में खेल सेक्सन देखकर तो में दंग रह गया । आस्टेलिया एवं  न्यूजी लैड जानकारी पहले छपी थी, बहुत विस्तृत में छपी थी।  एवं सायना नेहवाल एवं श्रीकांत को समाचार पत्र में बहुत ही कम स्थान दिया गया था । दो विदेशी टीमों के बीच में खेला गया एक किकेट मैच भारतीय प्रतिभाओें सायना नेहवाल एवं श्रीकांत द्वारा  बेडमिंटन में प्राप्त इस अभूतपूर्व सफलता का बराबरी कर सकता है । तो फिर दैनिक भास्कर या अन्य समाचार पत्रों को भारतीय लोगों की भावनाएं आहत करनें का अधिकार किसने दिया उन्हे । क्या उनका मन भारतीयांे की इस विजय को छोटा मानता है । मेरा और आत्मा समाचार पत्रों के इस प्रकार के थोथेपन से दुखी है । 
यह भारत के लिये बहुत दुख की बात है । 

Saturday, February 28, 2015

Religious intolerance in USA would have shocked George Washinton or Abraham Linkan

Earlier some day, I have written blog when Barac Obama said “Religious intolerance in India would have shocked Gandhiji”.  Statement was shocking and surprise.  India had objected statement. Home Minister had replied  but I think PM of India must object the statement but He never said anything. It was just a propaganda by USA president to insult India and Hinduism. After the statement, I can say that Barac Obama does not understand the Bharat or India.

This is my second blog on same topic, When intolerance in USA is highest against the Hinduism. Now, Barac Obama has closed his eyes. He did not say  “Religious intolerance in USA  would have  shocked  George Washinton  or Abraham Linkan”. Obama was playing like a show called secular zamat in India. Sometime I doubt, This secular zamat may be funded by countries like USA to destabilize India.

The president of USA cant guard hindu Mandir’s in USA, is talking about intolerance in India. PM Modi did not objected Obama Statement but He had given statement of attacks happed on churches in delhi. This shows the intension of Great Nation PM like India not like President of countries like USA.

Hindu origin citizen in USA has given a lot to USA. These Indian origin people have served the Nation called USA. They have given everything to them. They left their land, their mother, their relative. In becoming  USA as a super power, huge contribution by Indians.

Mandir’s in USA had faced many attacks earlier too but recently two events happed after the Obama statement, which draw attention for such a heinous crime performs in USA.  Obama never said what is happening with hindus in Pakistan, He never said anything about Bangladeshi Hindus. He has great attention what is happening in India while His own home needed security for Hindu. This is called real double standard. In india this is by many proverbs, I will some of them “Bina Pendi ka Lauta”,  “Do muha saamp”, “Kai baapo ka santan” aadi ke naam se bulaya jata hai.

First attack on Hindu Mandir was perform on 15 –feb- 2015 and Second attack we encountered on 28-feb-2015. What tolerance capacity in USA have been increased. These are events which are recorded by Media there may several which may not be recorded or traced by the media. President of Obama must pay attention in their country of religious intolerance further He must spare him self for such foolish and immature statement. He has duty to guard Hindu.

 

 

 

 

 

 

 

 

Friday, February 6, 2015

Obama Objectionable statement on Dharma

OBAMA Statement “Dharam”
Barak Obama recently has given two statements about  Current status of “Dharma” in Bharat. It looks very surprising that  first person of USA is worried about what is going inside the bharat. Even It is very surprising, India Prime Minister Narendra Modi had not objected the Obama’s statements. Bharat is not dominion state of USA.  Indian Prime Minister Narendra Modi must be aware of Bharat-USA bhai bhai.  Now Obama’s statement does not attract show called secular group of Bharat. They don’t have any problem. 

Secondly, Obama’s  shown distrust on Narendar Modi on Freedom of Religion, He want to say that on Prime Minister  Narendra Modi  integrity. Narendra bhai, I feel Obama  still has doubt in your skills. It is very unfortunate

It  is a joke by Obama,  specially the Nation like USA, who sees Muslim as a Terrorist. We have seen various example Indian muslim’s are facing problems in USA without any reasons. I can spot three cases where they have insulted Indian citizens.
       1.       APJ Abdul Kalam
       2.       Shahrukh Khan
       3.       Azam Khan


Like in India, APJ Abdul Kalam, Hamid Ansari, Azam Khan and Many more minorities get high post but it does not become a news. While many countries it becomes news as well as in many countries It is not possible too. Sometime to get in Cricket Team or Political position people  have to change their religion. This also happened with Boby Jindal or Piyush Jindal in USA. Who changed his Dharma and became a Christian. 

Obama is criticizing Narendra Modi from back door and Saying Narendra Modi close your eyes for christian missionaries they only Obama will appreciate you.