Thursday, April 16, 2015

महान महाराणा प्रताभः भारत की शान

आज समाचार में देखा कि अकबर के नाम से महान शब्द हटा लिया गया है। एवं महारणा प्रताप के महान शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। यह निर्णय राजस्थान बोर्ड के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने लिया है। इसके साथ उन्होने यह निर्णय लिया है कि पुस्तकों में आर्यभटट एवं भास्कराचार्य के बारे में भी पढाया जायेगा। इसके पश्चात् कुछ लोग पाते मचाये गये कि पाठयक्रम का भगवाकरण किया जा रहा है। अगर सही इतिहास पढाना भगवाकरण है तो भगवा करण अवश्य होना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा के अंग्रेजी करण से बहुत अच्छा है। अगर सरकार द्वारा कोई सही निर्णय लिया गया है कोई मीडिया इसे गलत संदर्भ में दिखाती है तो समझ लें कि अब समाचार पत्र या चैनल के दिन भर आयंे है । क्योंकि अब वह समय नही रह गया कि आप समाचार चैनलों में कुछ भी दिखाते रहे और आम जन उसे स्वीकार कर लेगें। इस बात को यही छोडते है।

राजस्थान सरकार इस निर्णय को साम्प्रदायिक कहना बहुत बडी मूर्खता होगी क्योकि इतिहास में महाराण प्रताप का स्थान अकबर से बहुत बडा है। अकबर भले दिल्ली का शासक रहा हो परंतु उसने भारत में रहने वाली आम जनता को युद्ध में जीतने के बाद प्रताडित भी किया है। सुनने में तो यह भी आया है कि तानसेन, बीरबल आदि उनका बदलकर मुस्लिम बनना पडा तब कही जाकर उन्हे अकबर के दरबार में स्थान मिला । अगर अकबर को संधि करनी ही थी विभिन्न रानियों विवाह क्यों किया । वह बहन मानकर भी संबंध बना सकता था । जैसे उसके पिता हुमायू ने किसी हिन्दू रानी को अपनी बहन माना एवं उनकी रक्षा के लिये वहां गये भी थें । दूसरा महाराणा प्रताप से युद्ध जीतने के अकबर ने 10000 आम जनका की हत्या की जो कि वर्तमान में युद्ध अपराध के नाम से जाना जाता है तो फिर इतने बडे युद्ध अपराधी को महान कैसे कहा जा सकता है। यह तो इतिहास कारों द्वारा बडा निराशा जनक विश्लेषण जान पडता है।
दूसरा भाग जो कि वर्तमान में कुछ लोगों की आंखो में चुभ रहा है कि न्यूटन को क्यो नही पढाया जा रहा है तो भाई जब साक्ष्य मिल चुके है कि केल्कुलस न्यूटन के जन्म से पांच सौ वर्ष पहले भारत में उपयोग कर रहे थे तो यह सिद्ध करने की आवश्यकता ही नही है कि केल्कुलस न्यूटन से पहले ही आ चुका है । अब मुझे यह तर्क समझ में नही आता है कि इसमें भगवाकरण कहां है। यह निहित परिवर्तन है जो नई खोजो अनुसार परिवर्तित किया जा रहा है। मुझे नही लगता कि इसमें कोई भी राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि अभी कहीं भी चुनाव नही चल रहें ।

मुझे तो बडा आश्चर्य हो रहा है कि मध्य प्रदेश, छश्तीसगढ, गुजरात आदि क्षेत्र क्यो अभी तक सो रहें है। इन्हे भी यह परिवर्तन कर लेना चाहिए। परंतु इन क्षेत्रों के नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर ही नही उठ पा  रहे है । उन्हे तो बस शिवराज सिंह चैहान या रमन सिंह के नाम का पोस्टर उचा करना है। देश या समाज हित में सोचने के लिये उनके पास समय ही नही है।तभी तो इतने वर्षो से शिक्षा नीति में कोई भी परिवर्तन नही हुआ है। इस बात के लिए मेै मध्य प्रदेश सरकार की कडी आलोचना करता हूॅ।

Sunday, April 12, 2015

भारतीय देशी गौ वंश संवर्धन एवं संरक्षण में इंटरनेट उपलब्ध साहित्य का महत्व


मनीष तिवारी (1) , ऋषभ परोची (2)
(1) कम्प्यूटर विज्ञान एवं अनुप्रयोग विभाग, सेंट अलायसियस महाविद्यालय (स्वा0)
tiwarikmanish@gmail.com
(2) कम्प्यूटर विज्ञान एवं अनुप्रयोग विभाग, सेंट अलायसियस महाविद्यालय (स्वा0)
1. परिचय
किसी भी जाग्रति अभियान का मूल मंत्र लोगो से जुडना एवं उन्हे विषय से अवगत कराना होता है। वर्तमान परिपेक्ष में भी भारतीय देशी गौ वंश संवर्धन एवं संरक्षण का मूल आधार भी यही है। भारतीय देशी गौ वंश संवर्धन एवं संरक्षण से जुडे लोगो का प्रयत्न होता है कि वह अधिक से अधिक लोगो से जुडे एवं गौ के वैज्ञानिक, समाजिक, आर्थिक पक्षो से आम जनों को अवगत कराये। देशी गौ वंश  से जुडे  विभिन्न पहलुओं को जानने के लिये गाय से जुडे साहित्य की आवश्यकता होती है। जब इलेक्टानिक उपलब्ध नही थे तब देशी गौ वंश से संबंधित साहित्य उपलब्ध तो था परंतु यह बहुत ही सीमित लोगो की पहुंच में था। जिस कारण यह महत्वपूर्ण एवं अमूल्य जानकारी केवल मौखिक रूप से ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक जाती थी जिस कारण उसमें त्रुटियां आना भी स्वाभाविक है । समाचार पत्रों में भारतीय देशी गौ वंश संवंर्धन एवं संरक्षण के प्रति एक अरूचि सी दिखाई देती है एवं  समाचार पत्रों में यह औपचारिकता के कारण ही यदा कदा देशी गौ की चर्चा होती है। इसी प्रकार इलेक्टानिक मीडिया भी गौ संवर्धन एवं संरक्षण के प्रति उदासीन एवं विरोधी हीे दिखाई पडती है। समाचार चैनल भारतीय देशी गौ वंश गौ संवंर्धन एवं संरक्षण को किसी एक विशेष समुदाय से जोडकर दिखाते है जो कि अत्यंत दुखद है क्योंकि भी भारतीय देशी गायों से किसी को भी किसी प्रकार की कोई भी हानि नही होती है। 
भारतीय देशी गौ वंश गौसंवर्धन एवं संरक्षण को पाठशालाओं में कोई स्थान नही दिया गया है। पाठशालाओ में तो गाया को 10 अंको के निबंध तक ही सीमित कर दिया गया है । वर्तमान शिक्षकों से भारतीय देशी गौ वंश  की जानकारी छात्रों तक पहुंचाने की कल्पना करना व्यर्थ ही है क्योंकि उनमें से अधिकतर नगरीय परिवेश के होते है या फिर वह नगरीय परिवेश में जाना चाहते है। अतः वे दूध/दही/घृत उपयोग तो करना चाहतें है परंतु गौवर एवं गौमूत्र से दूर भागते है।क्योकि उन्हे इन विशिष्ट एवं सरलता से उपलब्ध औषधियों के बारे कोई ज्ञान नहीे होता है। वह इसे मात्र देव पूजा के लिये ही उपयोग करना चाहते है। परिहास की सीमा तब हो जाती है जब लोगो को जर्सी गाय / भैस के दूध की तुलना आम जनों द्वारा की जाती है । जबकि जर्सी गाय के दूध तुलना देशी गाय के दूध से करने का अर्थ है कि आप विष एवं अमृत की तुलना कर रहें है। इस प्रकार आमजनो के मध्य में गाय की सही वैज्ञानिक एवं समाजिक जानकारी प्राप्त होने के सभी साधन नष्ट हो चुके थे। देशी गाय से जुडा साहित्य होने पर भी जाग्रति का कार्य में असफलता हो गया था । जिसके नकारात्मक परिणाम हमें भुगतने पड रहें है। 
इस कठिन परिस्थिति से उबरने में इ्रटरनेट में उपलब्ध विभिन्न माध्यमों ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में इंटरनेट गौजाग्रति अभियान  की तीव्रता एवं गति प्रदान की है वह अभूतपूर्व है । इंटरनेट के माध्यम से गौ संबंधित जानकारी सरलता एवं सुगमता से उपलब्ध हो पा रही है । 
2 गौवंश से संबधित कुछ आंकडे 
भारत में गौवंश की वर्तमान स्थिति  बडी ही दयनीय है । इस परिपेक्ष में म्ै आपके समक्ष कुछ आंकडे प्रस्तुत करना चाहता हूॅ । इन आंकडो से अनुमान लगाया जा  सकता है कि भारतीय देशी गौ वंश  संवर्धन एवं संरक्षण की अत्याधिक आवश्यकता  है। सन् 1920 में भारत में 4 करोड 33 लाख 60 हजार गौंश था । 1940 में यह 13 करोड 76 लाख  50 हजार 870 गौवंश में था । इनमें लगभग 5 करोड संाड/बैल, 6 करोड गायें एवं ढाई करोड बछडे एवं बछियां थी। 2003 की जनगणना के अनुसार भारत में 18 करोड, 51 लाख, 80 हजार  532 गायेथी। इसमें से दो करोड विदेशी गायो की संख्या है। जिनका दूध जहरीला होता है। इसे पीने से हदय रोग, केंसर एवं महुमेह जैसे घातक एवं जानलेवा रोग होते है। सन् 1992 से 2003 के भारतीय देशी गौवंश की संख्या में लगभग 2 करोड 85 लाख की कमी आई । जो कुल देशी गौवंश आबादी का 18 प्रतिशत था । 
भारत में सन् 1951 में प्रति एक हजार व्यक्ति 340 गायें होती थी। 1951 में भारत में प्रति हजार व्यक्ति यह संख्या 278 रह गयी।  सन् 2000 आते आते  प्रति एक हजार व्यक्ति 110 गाये रह गयी । मेरे अंतिम आंकडा 2005 है जो बडा ही दुखी करने वाला है। 2005 में यह संख्या 110 से घटकर मात्र 90 रह गयी है। 
3. मुगलसाम्रज्य एवं गौहत्या
बाबर ने भारत पर आक्रमण प्राप्त कर विजय प्राप्त कर शासन किया।  परंतु एक मुस्लिम शासक होने पर भी उसने गौहत्या पर कडे कानून बनाये एवं गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया । इसके बाद आने वाले सभी मुगल शासको के शासन काल में भी गौ हत्या पर पाबंदी रही है । मैसूर के शासक हैदरअली एवं टीपूसुल्तान के शासन काल में भी गौ हत्या प्रतिबंधित थी । इसके शासन काल में गौहत्या करने वाले का सर कलम कर दिया जाता है।  ख्1,  
भारत  में गौहत्या प्रारंभ करने का पूरा श्रेय अंग्रेजों का जाता है । राबर्ट क्लाईव में सन् 1760 में न केवल गौहत्या प्रारंभ कराई बल्कि उसने भारत में शराबघर एवं वैश्यालय भी प्रारंभ कराये।ं मुस्लिमों कुरैशी समाज के लोगों को प्रताडित कर उन्हे गौहत्या के कार्य में जबरन लगाया।ख्2,  
4. इंटरनेट द्वारा पंचगव्य औषधियो/ गौशालाओ द्वारा निर्मित उत्पादों / शोधकार्या का प्रचार
गाय से पांच प्रकार के उत्पाद उत्पन्न होते दूध, दरही, घी, गौवर, गौमूत्र इन्हे ही पंचगव्य की संज्ञा दी गई है।  इनसे संबंधित बहुत सारा साहित्य/ चलचित्र आपको इंटरनेट पर उपलब्ध है। 
4.1 पंचगव्य औषधियोः इंटरनेट पर यदि आप पंचगव्य औषधियों के बारें में ज्ञान प्राप्त करना चाहते है तो आपको शब्द चंदबीहंअलं टंकित करना होगा । इससे पर आपको बहुत सारी जानकारी सहसा ही उपलब्ध हो जायेगी ।
4.2 गौशाला में निर्मित उत्पादः  भारत में लगभग 2500 गौशालाओं पंचगव्य उत्पादों का निर्माण करती है । यह औषधियों के साथ प्रतिदिन उपयोग में आने वाली लगभग सभी वस्तुओ का निर्माण करती है । इनमंे से बहुत गौशालाओं ने उत्पादों की जानकारी इंटरनेट पर डाली है । परंतु अभी भी सभी गौशालाएं नेट पर उपलब्ध नही है। इसका काई भी आंकडा मेरे पास उपलब्ध नही की कितनी गौशालाओ की उपलब्धता नेट पर है ।
4.3 गायो पर शोधकार्यः यह बडा ही महत्व का विषय है कि गायो पर क्या शोध कार्य चल रहें। इसमें गौविज्ञान अनुसंधान केंद्र देवलापार, कानपुर गौशाला, भीलवाडा गौशाला राजस्थान, डा जैन इंदौर, अकोला गौशाला आदि प्रमुख नाम है। Kamdhenu Urine (Fresh) Therapy in Cancer Patients: A Holistic Approach, Milk – A Preventive Promotive and Curative Approach, Evaluation of an indigenous technology product Kamdhenu against pathogens of soil borne diseases, Research Work Done on Godugdha, Research Work Done on Goghrita, Research Work Done on Gomaya Preparations, Research Work Done on Gomutra Preparations, Research Work Done on Gotakra Preparations, etc.[5]
4.4 विस प्रभावः सन् 1995 में मास्कों के पास सूजडल नामक नगर में डा मदन मोहन बजाज, मोहम्मद सैयद इब्राहिम एवं डां विजय राज सिंह ने बिस प्रभाव से अवगत कराया है । इस शोध के अनुसार प्राणियों की हत्या करने से ई0पी0 तरंगे (आइंसटीन पेन तरंगे) उत्पन्न होती है जो भूकम्प के लिये जिम्मेदार होती है। 
इस प्रकार की लगभग 65 शोधों की सूची आपकों भारतीय शासकीय वेवसाईट पर उपलब्ध है जिस वेबपेज पर आप देख सकते है ।   
4.5 इंटरनेट पर साहित्यः इंटरनेट पर वर्तमान लेखको पर लिखित साहित्य एवं पुराना दुर्लभ साहित्य दोनो ही उपलब्ध है। इंटरनेटर पर स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित अत्यंत दुर्लभ पुस्तक गौकरूणानिधि उपलब्ध है तो वर्तमान गौ विषय के विद्धवानो एवं शोधकर्ताओं का साहित्य भी उपलब्ध है । यूटूब पर उत्तम माहेश्वरी, डां अशोक जैन, राजीव दीक्षित, डिस्वरी चैनल के विडियों, गौशालो पर उपलोड वीडिया बडी मात्रा में एवं सरलता से उपलब्ध है। एवं इन्हे निशुल्क डाउनलोड भी किया जा सकता है। 
4.6 गौ से संबंधित सूचनाओं का प्रचार गौ से संबंधित सूचनाओं का प्रचार एवं प्रसार के लियं इंटरनेट एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। समाचार पत्रो एवं समाचार चैनलों के माध्यम सं संपादक या पत्रकार स्वयं का दृष्टिकोण लोगो के समक्ष रखता है परन्तु सुनने या देखने वाले इस पर प्रतिक्रिया नही दे सकता है। सोशल मीडिया ने इस बंधन को भी तोड दिया है । अब फेसबुक/टवीटर/ब्लागर आदि ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें आप जन को गाय के प्रति संवेदना एवं समर्थन व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान किया है। इसके द्वारा बहुत से व्यक्तियों द्वारा आधारहीन एवं तथ्यहीन बातों करने करने एवं खण्डन एवं विरोध भी किया जा सकता है ।
5 फेसबुक/यूटूब/गूगल पर उपलब्ध कुछ आंकडे
हमने गाय से संबंधित साहित्य की इंटरनेट पर उपलब्धा को समझने के लिये एक छोटा सा प्रयोग किया। हमने अलग अलग कीवर्ह को  फेसबुक, यूटूब एवं गूगल में प्रतिपादित किया तब हमंे निम्न प्रकार के आंकडे उपलब्ध हुऐ। 



हम सारणी में दिये गये आंकडों में स्पष्ट  रूप से देख सकते है कि भारतीय देशी गौ से संबंधित साहित्य बहुत मात्रा में उपलब्ध है। 
6 उपसंहार
इंटरनेट ने भारतीय देशी गौ वंश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके माध्यम से गौशाला अल्प धन व्यय करके वस्तु ओं को प्रचार रही है । वीडियों  एवं  आडियों  माघ्यमों से असाक्षर लोगो तक भी जानकारी बडी सुलभ माध्यम से पहुचाई जा सकती है। बहुत सारी जानकारी निशुल्क ई बुक के माध्यम से उपलब्ध है। ब्लाग के माध्यम से समान्य अपना इंटरनेट पर विश्व के सामने बडी ही सरलता एवं निशुल्क रख सकता है। 
7. संदर्भ सूची
1. सुभाष पारलेकर, देशी गौ - एक कल्पवृक्ष खेती कुषि संस्कृति, संस्करण - द्वितीय,जीरो बजट प्राकृतिक शोध तंत्र, अमरावती, 2005
5.    http://govigyan.com/Pages/research.aspx
6.    http://ayushportal.nic.in/pgavya.htm  

Thursday, April 9, 2015

Suggestion to MyGov Portal

यह भारतीय दृष्टि से काफी कठिन कार्य है । यदि पाठशाला शिक्षा की बात की जाये तो यह कार्य और भी कठिन हो जाता है। क्योंकि यही वह शिक्षा है जो किसी के भी जीवन में बहुत अधि प्रभाव डालती है। इस कई प्रकार के मत चलते है । मै अपने कुछ समस्याओं को पहले पटल पर रखना चाहता हूॅ ।
1. भारत में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण रूप से व्यवसायिक हो चुकी है। यह केवल पाठशालाओ द्वारा व्यवसायिक नही की गई है बल्कि माता एव ंपिता के द्वारा व्यवसायिक की जा चुकी है।
2. भारतीय प्राथमिक स्तर की शिक्षा बहुत महंगी एवं अनुपयागी भी हो चुकी है।
3. उत्तम प्राथमिक शिक्षा के नाम पर छोटे छोटे बच्चो की वर्तमान नष्ट किया जा रहा है ।
4. गरीब एवं मध्यम वर्ग जो पढाई को महत्वपूर्ण मानते है उनकी पहुच से प्राथमिक शिक्षा बाहर होती जा रही है ।
5. प्राथमिक स्तर के छोटे छोटे छात्रों को उत्तम शिक्षा के नाम पर उनके घरो से बहुत दूर दूर पढने भेजा जाता है जिस कारण उनका बचपन एक मशीनी एवं बहुत अच्छा कृतिम एवं भावना रहित हो चुकी है ।
6. प्राथमिक शिक्षा में किसी भी प्रकार की स्वाथ्य से संबंधित कोई भी प्रकार जानकारी नही दी जाती है । जो बहुत ही दुखद है।
7. प्राथमिक शिक्षा में किसी भी प्रकार की यातायात से संबंधित कोई भी जानकारी नही दी जाती है।
8. प्राथमिक शिक्षा से महंगी महंगी कापी पुस्तको का प्रचलन अत्यंत दुखकारी है ।
9. प्राथमिक शिक्षा के स्कूलों का समय भी बहुत ही दुखकारी है। किसी भी विज्ञान के अनुसार बच्च के मानसिक विकास के नींद आवश्यक होती परंतु सुबह पाठशाला होने के कारण यह नही हो पा रहा है।
10. प्राथमिक स्तर पर बच्चो पुस्तकें निजि स्कूलो द्वारा स्वयं निश्चित की जा रही है जो कही से परिवेक्षित नही की जाती है।
11. प्राथमिक शिक्षा से ही बच्चों को उत्तम शिक्षा के नाम टीवी में आने वालेे सिरिलय आदि के प्रश्न पूछ जाते है जो कि अशाभनीय है ।
12. प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर किसी प्रकार की वर्तमान में घटित देश प्रेम से संबंधित घटनाओं वर्णन नही मिलता है।

अब कुछ समस्ओ के साथ में अपने  सुझाव रखता हूॅ

1. प्राथमिक शिक्षा का केवल देश व्यापी एक बोर्ड होना चाहिए।
2. प्राथमिक शिक्षा केवल सरकारी स्कूलों में ही पढाई जानी चाहिए। ताकि इसके व्यवसायी करण पर राक लग सके।
3. प्राथमिक शिक्षा में केवल कर्मठ एवं शिक्षक ही लाने चाहिए उनकी समीक्षा भी होते रहना चाहिए उन्हे अयाग्य पाये जाने पर हटा देना चाहिए।
4. प्राथमिक शिक्षा में केवल स्लेट एवं चाक का प्रयोग होना चाहिए।बच्चो का मौखिक ज्ञान एवं रचनात्मकता पर अधिक ध्यान होन चाहिय न की उसक अंको पर।
5. पूरे देश में एक की प्रकार का पाठयक्रम होना चाहिए ताकि पाठशाला बदलने पर बच्चों को किसी प्रकार कोई असुविधा न हो ।
6. जो बच्चे प्राथमिक से माध्यमिक में जा रहे है केवल योग्य ही हों एवं इस स्तर पर यदि कोई बच्चा असफल होता है तो उसके जीवन इसका   कोई भी प्रभाव/नौकरी आदि में नही आना चाहिए।
7. बच्चो की शिक्षा से कम्प्यूटरी करण हटा देना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे की तर्क शक्ति पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पडता है । यह बात विज्ञान भी स्वीकार करता है ।
8. भारत बहु भाषीय देश है इसिलिए मातृभाषा के अतिरिक्त उसे अपने देशी एक अन्य भाषा का अध्धयन भी इसी प्राथमिक शिक्षा में होना ही चाहिए ताकि उसमें देश अन्य हिस्सो संास्कृतिक जानकारी हो सके एवं उस विशेष क्षेत्र अपनत्व की भावना भी उत्पन्न हो ।
9. प्राथमिक पाठशालाओं का समय 10 बजे के बाद हो ताकि बच्चे रचनात्मक कार्याे के लिये बहुमूल्य सुबक का आनंद ले सके ।
10. जैसे बर्तमान मध्यप्रदेश में गर्मियों में भी पाठशलाऐ लगायी जाती एवं पाठशला समाप्त होने स्कुलो द्वारा बहुत अधिक ग्रह कार्य दे दिया जाता है जिससे का रचनात्मक एवं मानवता का पहलु बिलकुल समाप्त हो गया ।