Sunday, April 29, 2018

पकोडे बेचना स्वभिमान की बात


    देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया कि पकोडा बेचना भी रोजगार है। इसके बाद अमित शाह ने इस बात का समर्थन किया है। और त्रिपुरा के मुख्य मंत्री का बयान है कि आप सरकारी नौकरी के पीछे न भागें आप पान की दुकान या दूध की दुकान भी खोल सकते है। जिसमें मुख्य मंत्री विपलप देव के ब्यान को तो उन्होने विवादित बयान ही कह डाला है।
      इन तीनों बयानों का  मीडिया ने पागल सांड जैसा  व्यवहार प्रारंभ कर दिया। जैसे गांवों में अगर नंदी को कोई बात पसंद न आये तो वह अकारण ही आपको मारने के लिये दौडता है।
     इसके बाद बात आती है विपक्षी दलों की उन्होने प्रधान मंत्री के बयान के बाद बडे बडे धरने दिये है। कई ने पकोडे के लिये नारे भी बनाये है। कई ने तो एसी कारों एवं फाइव स्टार होटले से बाहर आकर चौराहों पर पकोडे  भी खाये है। अच्छा लगा कि  विषेष उस समय पकोडे वालों की बिक्री में थोडी सी गा्रेथ देखने का मिली है। उसके पश्चात् राजनीतिज्ञों ने भी बयानों में पकोडे के लिये खासा प्रेम  दिखाया है।  अतः कहने का तात्पर्य की इन सभी की भयंकर आलोचना की गई है। और यह उचित भी है।
      अब वास्तविक बात करते है जिस प्रकार मीडिया एवं विपक्षी दलों ने छाटे काम करने वालों का काम के आधार पर घोर अपमान किया है यह निंदनीय है। क्या मीडिया एवं विपक्ष कहना चाह रहा है कि केवल जो सरकरी नौकरी द्वारा जीवन में धन का अर्जन करते है केवल वे ही देष सेवा करते है। एवं उन्हे ही समाज में सम्मान प्राप्त करने का अधिकार हैै। जो लोग स्वतंत्र होकर स्वयं का रोजगार करते व े समाज में सम्मान पाने के अधिकारी नही है। हमारे देष में छोटे छोटे काम करने वाले हजारेों प्रकार के रोजगार है। इनकी दृष्टि वे सब बेकार है। समाज में उनका कोई स्थान नही है।  मेरे घर के सामने से सब्जीवाला, फुल्की वाला, चाट वाला, नुक्कड के पास पानवाला, दुधवाला, जुते की सिलाई करने वाला, सिल की टकाई कनरे वाला, गन्ने का जूस बेचने वाला, फल वाला, पकोडे वाला यह सभी समाज के अंग है जैसे कोई सरकारी नौकरी करने वाला होता है। यह सभी सम्मान के  हकदार है । और इन्हे समाज सम्मान देता है। यह लेाग न हो तो व्यापारिक लुटेरे जो 500 रूपयें बाल काटते है और 100 रू की काफी बेचत है लूट का महौल उत्पन्न कर दें ।
  मीडिया एवं विपक्षी दलों का व्यवहार बडा स्तब्ध करने वाला है। इन्ही छोटे छोटे व्यापारियों ने देष को पूजीपतियों एवं बडी बडी विदेषी कंपनियों के हाथों में जाने से रोका है। अन्यथा विदेषों में तो लोग की हैसियत बाल कटवाने की भी नही है। ऐसा अनुभव मेरे दोस्तों ने  बताया है। परंतु मेरे भारत में बाल कटाने एवं दाडी बनाने की सेवा मात्र 30 से 70 रू में प्राप्त की जा सकती है। अब इतनी बडी सेवा इतने कम दामें में उपलब्ध हो सकती है तों इस काम में क्या बुराई है। और हम किस आधार पर इन्हे छोटा कह रहे है।
    दुनिया में अगर आपकी भावना सेवा करने की है तो आप के द्वारा किये गये  सभी कार्य महान है। इस बात को कबीर दास जी, संत रविदास जी ने सिद्ध किया है।  और किसी कार्य को छोटा समझना बहुत ही छोटी और गिरी हुई मानसिकता का प्रतीक है।
बल्कि पहले कहा जाता है किसानी को सबसे उत्तम, व्यापार को मध्यम एवं नौकरी को नीच कर्म की श्रेणी में रखा जाता था ।
 

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