भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ । आशाऐ तो ऐसी कि गुलामी की सम्पूर्ण निशानियो को सबसे पहले भारत से समाप्त किया जावेगा परन्तु ऐसा हुआ नही जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मंत्री बने और बनने के बाद उन्हे देश से अधिक उनके अतराष्टीय कद की चिंता होने लगती । वह देश के लिये कुछ नही कर पाये क्योंकि उन्हे भारत के लोगो से अधिक अंग्रजो की रानी का ध्यान रहता था । उन्होने महात्मा गांधी के स्वदेशी के सिद्धातों की धज्जियां उडा दी एवं उनके कपडे न तो भारत में बनते थे और न ही धुलते थे । यह भारत देश के धोबी, कोरी एवं नामदेव समाज का अपमान है क्योकि जवाहर लाल नेहरू ने धोबी, कोरी एवं नामदेव का इस योग्य ही नही समझा कि यह कपडे धो एवं बना सके । जवाहर लाल नेहरू ने ही विदेशी समानो को खरीद कर देश में विदेशी समान के लिये बाजार बनाया ।
आज 67 वर्षो दैनिक भास्कर में एक समाचार पत्र आया कि भारतीय सेना अब गुड मार्निग के स्थान पर जय हिन्द शब्द का प्रयोग करने के आदेश दिये है । एवं कार्यक्रम समाप्त होते समय भारत माता की जय का उदघोष हो यह शब्द सुनकर मेरी आत्मा गदगद हो गयी एवं मै इसके लिये लिखे बिना रह न सका । मै श्री जनरल बिक्रम जीत सिंह आत्मा से धन्यवाद देना चाहता हॅू । जिन्होने एक सकारात्मक परिवर्तन लाया है ।
हमारे शासक इस गुलामी को समझ नही पाये एवं इस अंगे्रजी सभ्यता का बोझ अपने सर पर लाद कर उसे गर्भ समझ रहे है । हमारे देश के वर्तमान परिस्थिति इस प्रकार की उत्पन्न की गई है कि जैसे हमारे उपर यदि विकसित देशो का हाथ न होता तो हमारा अस्तित्व ही न हो । यह मानसिकता गुलामी की ओर ले जाती है । गांधी जी ने सदैव इस मानसिकता का विरोध किया है परन्तु उनके पर अनुयायी श्री जवाहर लाल नेहरू को अपनी शक्तियों का कभी ज्ञान ही नही हुआ वे कभी चीन तो कभी रूस की ओर देखते रहे ।
जिस प्रकार आज श्री बिक्रम जीत सिंह जी ने गुड मार्निग की गुलामी समाप्त किया है उसी प्रकार श्री अटल जी ने भी गुलामी की निशानी को समाप्त करने का प्रयास किया था । सन् 2000 तक भारत में बजट फरवरी की दिनांक को संध्या 5 बजे प्रस्तुत किया जाता था । 2001 प्रथम बार श्री यशवंत सिंहा जी ने अटल जी के नेतृत्व में भारतीय समय अनुसार सुबह 11 बजे बजट प्रस्तुत किया एवं अंग्रेजो की गुलामी का एक निशान मिटाया । इस प्रकार इन्होने भारतीय गौरव एवं गरिमा का सम्मान किया । न जाने कितनी ऐसी ही जंजीरे हमारे उपर जकडी हुई जिन्हे हमें बहुत जल्द एक एक करके तोडनी ।
वकीलो के कोट की गर्मी भी उसी गुलामी एवं मूखर्ता का परिचय है । जो उन्हे गर्मियों में भी में वह काला एवं गर्म कोट पहनने मेें मजबूर कर रहा है । एक ओर दीक्षांत समारोहो में पहनी जानी वाली वह काली और भद्दी पोशाक जिसे क्यों पहनते है क्योंकि अंग्रेज ऐसी की पोशाक पहना करत थे । अंग्रेजी भाषा का हर स्थान पर प्रयोग करना भी गुलामी महत्व देने के समान है ।
हम भारतवासियों को ऐसी कुकृत्यों को पहचानना चाहिये एवं इन गुलामी से ओतप्रोत परंपराओं को समाप्त कर देना चाहिये ।