26 अगस्त को कुछ ही दिन षेश रह गये है । आप सोच रहे होगे कि 26 अगस्त को ऐसी कौन सी बात हो गई क्योंकि इस दिन कोई विषेश कार्यकार्यम आयोजित नही किये जाते है । मुझे रानी पद्मावती की कहानी पढकर इस बात का दुख है कि इस दिन को वर्तमान भारत के लोगो एवं षासकों दोनो ने भुला दिया है । यह दिन भुलाने के कारण ही षायद भारत देष मे नारियों की यह दुर्दषा हुई है ।
26 अगस्त 1303 की प्रभात मे सूर्यदेव चित्तोड को अपने प्रकाष से ललायित कर रहे हैं । चित्तोड के राजा श्री रावल रत्नसिह एवं उनकी सारी प्रजा पुरूश एवं स्त्रीयां अपने अपने भाग्य उदय के लिये कमर कस रहे है । चित्तोड का किला चारो ओर से दिल्ली के तात्कालीन सुल्तान अलाउदद्ीन खिलजी कि फौज से घिरा हुआ है ।
सुल्तान की जीत निष्चित है, यह सुलतान जानता है, सुल्तान ने पिछले छ़ आठ महीने किले का घेराव किया हुआ है। चित्तोड किले मे सारी आधारभूत वस्तुओं की कमी आ चुकी एवं यह स्थिति दिन प्रति दिन दयनीय होती जा रही है । सुल्तान अब मात्र रावल रत्नसिह के आत्म समर्णन की प्रतिक्षा मे है । ताकि आत्म समर्णन के पष्चात वह रानी पद्मावती को दिल्ली ले जाकर अपनी हरम मे रख सके ।
सुल्तान की जीत निष्चित है, यह सुलतान जानता है, सुल्तान ने पिछले छ़ आठ महीने किले का घेराव किया हुआ है। चित्तोड किले मे सारी आधारभूत वस्तुओं की कमी आ चुकी एवं यह स्थिति दिन प्रति दिन दयनीय होती जा रही है । सुल्तान अब मात्र रावल रत्नसिह के आत्म समर्णन की प्रतिक्षा मे है । ताकि आत्म समर्णन के पष्चात वह रानी पद्मावती को दिल्ली ले जाकर अपनी हरम मे रख सके ।
रानी पद्मावती रावल रत्नसिह की पत्नि है । जिनके रूप को स्वयं भगवान ने गढा है । वह जितनी रूपवान थी उतनी ही पराक्रमी, बुद्धीमान एवं चरित्रवान हैं। रानी और वीरांगनाओ की संख्या चित्तोड मे लगभग सोलह हजार है । राजपूत क्ष़ित्रय वीरो की संख्या लगभग 30000 है । सुल्तान से लोहा लेने की सारी योजना तय हो चुकी है । सूर्यदेव के संकेत के साथ ही उसके क्रियांवयन का समय आ चुका है ।
क्षत्राणियो कि मुख की षोभा देखते ही बनती है । प्रभात होते ही सभी भगवान की पूजन कर कर्म भूमि की ओर निकल चुके है । उनके चेहरो को देखकर लग रहा है मानो आज के लिये ही उनका जन्म हुआ है ।
रानी पद्मावती श्रृंगार कक्ष मे बैठकर श्रृगार कर रही है । उन्होने विवाह में प्रयोग किये गये वस्त्रों का चयन किया है । गले मे मंगलसूत्र, मांग में कुमकुम, मांथे पर बिदिंया, ललाट पर पूर्वजों का गौरव, पति परमेष्वर की भावना को संवारे हुऐ है । यही चित्रण चित्तोड के किले मे उपस्थित सभी क्षत्राणियो का है । मानो वह पुनः विवाह के बंधन मे बंधने जा रहीं है । पुरूश भी महिलाओं से पीछे नहीं है । षीश पर भगवा रंग की पगडी सुषाभित हो गयी है । सम्पूर्ण षरीर भगवे के रंग से लिपटा हुआ है । मानो कोई योगी संसारिक मोह माया छोड कर ईष्वर की षरण मे जा रहा है। आयु 5 वर्श हो या पचास वर्श उत्साह सभी जनों को है । सभी जन अपनी ही श्रृंगार में व्यस्त है किसी को अन्य व्यक्तियो के लिय समय ही नहीं है । सम्पूर्ण चित्तोड किला जैसे किसी महोत्सव ही तैयारी मे व्यस्त है । एक ओर किले का सुल्तान ने घेरा हुआ है ओर महोत्सव ही तैयारी हो रही है । यह तो आष्चर्य वाली बात है । क्या है महोत्सव जिसके लिये सभी इतने ललाईत है ।
रानी पद्मावती ने रानी नागमणी; राजा रावल रत्नसिह की प्रथम पत्नि द्ध से अर्षीवाद लिया एवं दोनो ही युद्ध भूमी की ओर चल पडी है । प्रतीत होता है महल के बाहर ही गोमुख में अग्नी देवता को आहूती देने के लिये सभी क्षत्राणियां एकत्रित हो चुकी है, ताकि युद्ध भूमि मे उनके पति, पिता, भाई, पुत्र एवं देवर विजय पताका लहरा सकें ।
बादल 12 वर्श का क्षत्रीय राजपूत या मात्र बालक। बालक कहना उसका अपमान है । उसके रक्त मे अभिमन्यू का रक्त बह रहा है । यही वह वीर योद्धा जिसने अपने चाचा गौरा के साथ मिलकर सुल्तान पर आक्रमण कर दिया एवं राजा रावल रत्नसिह को सुल्तान की कैद से छुडा लाया था । सुल्तान की सेना समाप्त कर दी थी परन्तु सुल्तान युद्ध समय एक स्त्री के पीछे छुप गया था । भारतीय वीर स्त्री पर वार नही करते है। इस प्रकार कायरता एवं छल से सुल्तान ने गौरा से प्राण रक्षा की परन्तु इस नैतिकता के कारण गौरा को प्राणो की आहुति देनी पडी थी।
सभी राजपूत वीरों ने अपनी तलवारें कस लीं । चित्तोड का मुख्य व्दारा खोल दिया गया है । चित्तोड के राजपूत सिंह के तरह सुल्तान फौज के उपर आक्रमण कर चुके है । किले में क्षत्राणी रानी पद्मावती ने जयघोश किया हर हर महादेव, जय हर, मानो माता सती स्वयं रानी पद्मावती के षरीर मे समाहित हो गई हो । वहाॅ रण भूमि मे राजपूतो ने षिव का रूप धारण किया हुआ है । सम्पूर्ण चित्तोड किले मे महादेव महाकाल षिव ने डेरा जमा लिया हो । हर क्षण कितने भारतीय राजपूत वीर अपने आत्म सम्मान के लिये बलि दे एवं ले रहे थे। यहाॅ गोमुख मे रानी पद्मावती के अगले कार्य को देखने के लिये देवता भी स्वयं पृथ्वी पर अवष्य ही आये होगे । उन्होने भी भारत की नारियों की स्तुति की होगी । मानो 16 हजार सती माता की अवतार गोमुख पर एकत्रित हो गई हो । सम्पूर्ण ब्रम्हाड भी ही उनके द्धारा किये जय घोश चकित है । धीरे धीरे राजपूत वीरों संख्या कम हाने लगी है । सुल्तान विजय के पथ पर अग्रसर हाने लगा है । सुल्तान ने सभी राजपूतों योद्धाओं का मृत्यु सैया पर लिटा दिया। अवष्य ही उन वीरों को षिव लोक प्राप्त हुआ है ।
सुल्तान विजय प्राप्त कर चित्तोड किले की ओर अग्रसर हो चुका है । हर्शित है कि युद्ध जीतकर वह राजपूतानी क्षत्राणी रानी पद्मावती का अपमान कर दिल्ली ले जा सकेगा एवं उन्हे अपने हरम मे रख सकेगा। अन्य सुल्तान सैनिक भी भारतीय नारिंयो का अपमान करने के लिय आतुर है । किले मे प्रवेष करते समय एक अजीब सी दुश्कृत की मंषा सुल्तान एवं उसके सैनिक के मन में बलवान है । जी चाह रहा होगा की सारे चित्तोड को लूट ले । धन एवं नारी किसी को भी न छोडा जाये ।
सुल्तान ने किले मे प्रवेष किया सम्पूर्ण किले मे सन्नाटा पसरा हुआ है । कोई भी नारी, बालक, बालिका किले मे दिखाई नही पडे । सुल्तान ने रानी पद्मावती को ढूढने आदेष दिया है । सैनिको ने चित्तोड मे धन लूटना प्रारंभ कर दिया है । परन्तु तभी किले से धुआ दिखाइ दिया सारे सेनिक एवं सुल्तान धुऐ कि ओर चल पडे । यज्ञ कुड दिखाई पडा । जिसमे षरीर अन्तिम रूप राख दिखाई पडा । रानी पद्मावती एवं 16 हजार क्षत्राणियों ने सती माता के मार्ग को चुना अग्नि पूजन के बाद उन्होने अपने आप को परम-पिता परमेष्वर मे लीन कर लिया । एक एक कर गोमुख के अग्नि कुंड मे अपने आप को समर्पित कर दिया एवं वीरगति को प्राप्त हुइ । एक क्षण भी अपमान न सहने का निर्णय लिया ओर स्वयं ही अग्नि मे आहुति बन गई इसके पष्चात सम्पूर्ण 16 हजार छत्राणीयेा ने जय हर किया । जिसे जौहर के नाम से जानते है ।
सुल्तान रानी पदमावती का शरीर तो क्या राख को स्पर्श नही कर पाया है । सुल्तान जीवन भर अपनी इस हार को स्वीकार नही कर पाया होगा । इसिलिये उसने इस घटना के प्रमाणों मिटाने का प्रयत्न किया परन्तु ऐसा हो न सका । एवं मलिक मोहम्मद जायसी ने उनके सतित्व एवं वीरता पर पदमावत नाम का ग्रंथ लिखा है । जबकि सुप्रसिद्ध अमीर खुसरो ने उनके बारे मे कुछ नही लिखा है क्योंकि वह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेवक थे ।
इनके जौहर के लिये विकी पिडिया एवं अन्य अंग्रेजी लेखों में (Suicide)शब्द का प्रयोग किया गया है । क्या आपको लगता है कि यह आत्माहत्या है । अंग्रेजी भाषा की शब्दावली मे जौहर शब्द या इसके सामान कोई शब्द नही है । क्योंकि अंग्रेजी सभ्यता मे ऐसा पराक्रम कभी हुआ ही नही है । रानी पद्मावती एवं 16000 हजार क्षत्राणीयो ने ही जौहर प्रारंभ किया है । कई बुद्धिजीवी षंका करते है कि यह कहानी है मनगढंत है अर्थात रानी पद्मावती एवं 16000 हजार क्षत्राणीया वास्तविकता में नहीं थी, वह केवल कहानियों में ही है ।
रानी पद्मावती एवं 16000 हजार क्षत्राणीयां ने रण भूमि युद्ध कर अपने प्राण त्याग दिये थे । वह भारत की सच्ची वीरांगना है। जिन्होने आपमान के जीवन के वजाय मृत्यू को चुना है । इतिहास में शायद ही कभी ऐसी लडाई नारी सम्मान के लिये लडी गई होगी ।
"हमें भारत में 26 अगस्त को नारी त्याग एवं सम्मान दिवस के रूप मे मनाना चाहिये ।"
Special Thanks:
I have special Thanks to Shri Nitesh Mourya and Shrimati Rachana Tiwari. Who have helped me to put the subject in right and effective way.
I will be thankful to all the reader who read the article. I will also thankful all the reader who has comment ed and shown their respect to Rani Padaram and Sixteen Thousand Veerangana of Bharat.
References:
Writer of the is Literature : Malik Muhammad Jayasi's.
Link about Padamavati:
http://www.indianetzone.com/37/rani_padmini_queen_chittor.htm
Links shows Padamawati Does not exist:http://www.indianetzone.com/37/rani_padmini_queen_chittor.htm
http://www.indiacurrents.com/articles/2009/07/28/mystery-woman-of-mewarhttp://indiaculture.net/talk/messages/128/8000.html
Link for PadamaVat Book online:
PadamaVat - Book
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First of all I would like to thank’s Mr. Manish Tiwari .Owning of that we are able to know pertaining The (Rani PadamaVati ka Jouhar) (Queen Padmani) it is a very nice
ReplyDeleteसर्वप्रथम मै श्री मनीश तीवारी जी को, इस रोचक ऐवम महत्वपूर्ण जानकारी के लिये धन्यवाद देना चाहूगॉ. मै भी मनीश जी के विचारो से सेहमत हु, हमे सच्चे भारतीय होने के नाते, उन वीरांगनाओ के सम्मान मे 26 अगस्त को नारी सम्मान ऐवं त्याग दिवस के रूप मे मनाना चाहिये ।
ReplyDeleteThanks
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