Thursday, August 1, 2013

बदलते सपने (Changing Dreams)

जब मेरी आयु 3 वर्श की रही होगी तब निष्चिित ही मेरा सपना रहा होगा की मै अपनी माता पिता की तरह बडा हो जाउ । यह मुझे ठीक से याद नही है । मुझे तब पता भी नही होगा की सपना क्या होता है । परन्तु जब मै अपने चाचा जी को उनकी इच्छा अनुसार यहाॅ वहाॅ जाते देखता, मुझे खेलने नही मिलता, मुझे पढने के लिये कहा जाता, मुझे मन का खाना नहीं मिलता, मुझे मार या डांट खानी पडती तो मुझे लगता कि बडा कब तक हो जाउॅगा । उस अबोध ज्ञान, बचपन, चंचलता का यही सपना था ।

जब मेरी आयु लगभग आठ वर्श की हो गई तो मेरा सपना परिवर्तित हो गया । मेरा सपना भारतीय सेना में जाने का हो गया । मुझे लगता सेना भारत की सबसे महत्वपूर्ण मूल संस्था है और मुझे सही लगता था । मेरा पेतृक गा्रम बरेला जबलपुर  से भारतीय सेना के वाहन गुजरते रहते थे मै उन्हे देखकर, सावधान की स्थिति मे आ जाता और जय हिन्द की स्थिति की मे खडा हो जाता था । मेरा मन उस गोरवषाली वर्दी को पहनकर देष सेवा के लिये उत्प्रेरित रहता । परन्तु मात्र एक पुत्र होने के कारण परिवार ने सदा इस क्षेत्र मे मेरे लिये अरूचि दिखाई । कक्षा दसवीं मे मुझे चसमा लग गया और मेरे लिये यह एक सपना ही रह गया ।

अब मेरे सपने माता पिता के प्रभाव में आने लगे थे । दसवी और बारहवीं मे प्रथम श्रेणी में आने का दबाव था प्रतिषत जितने अच्छे होंगे, उतनी अच्छी नौकरी मिलने संभावना बढ जाती है । मैने इसे प्राप्त करने के लिये काफी प्रयास किया और सफलता प्राप्त की । इस समय सपनों से वंचित रहा । बारहवी उत्तीर्ण होने के पष्चात् चिताओं का समय प्रारंभ हो गया । सपने देखने के लिये समय ही नही था । बस दौडना है क्योंकि सभी दौड रहे। किसी भी प्रष्न के लिये कोई स्थान न था।

अंतिम समय में बी0सी0ए0 में प्रवेस ले लिया । यह सपना मुझे साफटवेयर इंजिनियर बनायेगा । यह एक ऐसा सपना था जो मैने कभी नही देखा परन्तु उसका सामना वास्तविकता कि रूप मे हो गया । अंधी दौड मे मनीश भाई षामिल हो गये और साफटवेयर इंजिनियर बन भी गये।  

समय के साथ सपनों ने भी करवट ले ली है अब सपने आवष्यकता के अनुरूप ही देखते है । यह सपने मूलत धन से संबंधित होते है। अब सपनों को हमारी बच्चे प्रभावित करने लगे हैं वह ही अब मूल आधार बन चुके है ।

यह तो मेरी एक छोटी सी मन की बात है। यह सपनो का खेल सभी के साथ होता है । सपनो का बनना बंद हो जाता परन्तु  सपनो का बनना कभी बंद न होगा । समय की मार सदैव सपनों पर पडती रहेगी । आप भी अपने सपने बतायें, बचपन के और पचपन के भी  ।

2 comments:

  1. सही कहा है मनीष . समय की मार सपनो पर अक्सर पड़ती हैण् बचपन में जो भी हमारे सामने सबसे अच्छा होता है हम भी वैसा ही बनना चाहते हैंण् और जैसे जैसे वक़्त गुजरता है हमें हमारी जिम्मेदारी का एहसास भी होने लगता जिसके चलते हम चाहकर भी वो नहीं बन पाते जो हम बचपन में बनना चाहते थेण्

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