सवेरे का समय था, गौपाल ईश्वर का ध्यान कर, अपने राज्य के विचरण के लिये निकला ही थी कि कुछ प्रजाजनों एक पचास वर्ष के मध्यम आयु व्यक्ति को पानी आदि पिलाकर धीरज बंधा रहे थे । गौपाल के वहां पहुचने पर ज्ञात हुआ कि वह चक्कर खा कर चुका है ।
व्यक्तिः रक्ताचापो ।
गौपालः रक्ताचापो जी आप किस समस्या के कारण आप इस दुर्गती को प्राप्त हुऐ है ।
व्यक्तिः गौपाल जी, मुझे रक्तचाप की समस्या है मेरा रक्त चाप उच्च एवं निम्न बहुत ही शीघ्रता हो जाता है ।
गौपालः रक्ताचापो जी, इस बिमारी में घिरने का क्या कारण है ।
रक्ताचापोः मै अत्यधिक वातानुकुलित दूरदर्शी यंत्र का प्रयोग करता था । मै प्रभात एवं संध्या में विचरण को भी नही जाता था । इसके अतिरिक्त में चिन्ताओं से भी पीडित था । इन ज्ञात कारणों के कारण मुझे इस व्याधि ने घेर लिया है ।
गौपालः तो आपने इस समस्या से निपटने का उपाय नही किये है ।
रक्ताचापोः मै इन डाक्टरो के पास जाकर दवाईयां लाता हूॅ एवं मुझे इन्हे नियमित रूप से खानी पडती है । इनमें थोडी सी भी चूक मुझे इस परिणाम तक पहुॅचा देती है । यह दवाईयां बहुत महंगी होती है । गौपाल जी एवं नियमित लेना पडती है ।
गौपालः तो आपकी यह बिमारी कब तक ठीक हो जायेगी ।
रक्ताचापोः डाक्टर कहते है इसका कोई समाधान नहीं है इस रोग को केवल नियंत्रित किया जा सकता है एवं मुझे जीवन भर इसी प्रकार दवाईयां का सेवन करना होगा ।
गौपालः यह सुनकर व्यथित हो जाता है एवं वह स्थान छोड कर सुचिकित्सा के पास चला जाता है एवं सुचिकित्सा से इस विषय पर चर्चा करता है ।
सुचिकित्साः इसका इसका उपाय तो बडा ही सीधा एवं सरल है । एवं यह रोग जड से समाप्त किया जा सकता है ।
गौपालः अत्यंत प्रसन्नता के साथ पुछता है क्या ।
सुचिकित्साः गाय की पीठ पर प्रत्येक दिन 10 से 20 मिनट हाथ फेरे, यह प्रत्येक दिन में प्रभात एवं संध्या दोनो समय करे । इस विधि को लगभग 4 से 5 महीने तक दोहराये, यह रोग बिना किसी मूल्य को दिये समाप्त किया जा सकता है ।
गौपालः गौपाल ने यह उपाय रक्ताचापो को तुरंत बताया ।
रक्ताचापोः रक्ताचापो ने यह विधि 4 से 5 महीने की एवं वह हमेशा के लिये रक्त चाप के रोग से स्वतंत्र हो गया ।
गौपालः सुचिकित्सा आप मुझे बताये किस प्रकार इतनी बडी समस्या का समाधान केवल गाय की पीठ पर हाथ फेरने से हो गया है ।
सुचिकित्साः राजकुमार, गौपाल, गौमाता 21 प्रतिशत स्वास द्वारा अंदर की ओर ले जाती है । एवं 16 प्रतिशत वापस वायुमंडल में छोड देती है । एवं यह गाय के चारो ओर आवरण के रूप में उपस्थित होता है । हम उसी आवरण में उपस्थित रहते है ।
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