श्री कृश्ण एवं गौमाता
श्री कृश्ण के जीवन का गाय का महत्व हम सभी जानते है । गौमाता ने पग पग पर श्री कृश्ण को सुरक्षा एवं बल प्रदान किया है । इस लेख मे उन्ही कुछ घटनाओं का वर्णनन है । श्री कृश्ण के जन्म होते ही गौमाता का महत्व प्रारंभ हो गया था । श्री कृश्ण के जन्म होने पर वासुदेव जी ने दस हजार गायों को दान देने का प्रण किया । श्री कृश्ण वृदावन में रहते थे , उसे गोश्ठा कहा जाता है, गोश्ठा में एक करोड गायों का निवास होता है ।
पूतना से सर्वजगत परिचित है, पूतना प्रकरण के पष्चात् श्री कृश्ण को गौमूत्र से स्नान कराया गया था । उनके माथे पर गौ गोबर का तिलक किया गया था । गौधूल को सम्पूर्ण देह पर लपेटा गया था । इस प्रकार गौ व्दारा कृश्ण की रक्षा की गई थी ।
श्री कृश्ण ने जब चलना प्रारंभ किया तो वह खिलौनो के बजाय गौषाला में बछडों के साथ खेला करते थे एवं पृथ्वी पर कृश्ण जन्म गौ सेवक के रूप में हुआ है। एवं उन्होने अपनी लीलाओं के व्दारा यह संदेष दिया कि हमारे जीवन मे गाय का कितना महत्व है । श्री कृश्ण गौ सेवा मे इतने लीन थे कि उन्होने यषोदा मईया से सारी गईयों के लिये खडाउ बनवाने के लिये कहा था । एवं यषोदा माता व्दारा मना करने पर वे स्वयं भी वन मे बिना खडाउ के गायों को चराने के लिये जाया करते थे ।
श्री कृश्ण ने माता यषोदा से कहा कि कृश्ण अवतार उन्होने केवल गैासेवा करने के लिये लिया है । क्योकि जब वह राम थे तब वह गाय सेवा से मन नहीं भर पाये थे ।
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