Wednesday, March 5, 2014

प्राचीन भारतीय संस्कृति में गौ का महत्व एवं श्रीकृष्ण

  भारतीय गौ के विषय में हमारे ज्ञान को सही दिशा देने वाले थे । श्रीकृष्ण भगवान देखा जाये तो गाय का गोबर खेती में उपयोग में लाने के तं़़़़त्र की खोज करने वाला अगर कोई पहला वैज्ञानिक है, तो वह है योगीराज कृष्ण। जब गोकुल में कृष्ण अपने बचपन में बडे नटखट थे। माता यशोदा और पूरे गांव को दो दिन भर सताने का काम करते थे। तब माता यशेादा ने उनको पढने के लिए संदीपनी ़ऋषि के आश्रम में भेज दिया। 


गुरू को ज्ञात था कि कृष्ण क्या है। वह कितना नटखट है। वह यहां भी लोगों को तंग करेगा इसीलिए उन्होने इनको गौशाला का व्यवस्थापन का कार्य दे दिया। गाय का गोबर निकालना , झाडू लगाना , चारा खिलाना, पानी पिलाना यह काम करते वक्त उन्होंने कुछ बातों का सुक्ष्म निरीक्षण किया कि जब वे गोशाला का गोबर उठा के एक फल के पेड के नीचे डालते थे तो उन्हें मालूम पडा कि जिस पेड के नीचे वे गोबर डालते हैं वह पेड अन्य पेडों की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बढ रहा है। उसी पेड से दोगूने फल प्राप्त हो रहे हैं। तब उन्होंने सोचा कि एैसा क्योें हो रहा है। उनके मन में ये सवाल सताने लगा कि जिस पेड के नीचे गोबर नहीं डलता वह तुलनात्मक मंद गति से बढता है तथा फल भी कम लगते हैं। एैसा क्यों ़? 

शिक्षा पूरी होने के बाद वे गोकुल लौटे उस समय गांव गांव में सहस्त्रों गायें होती थीं। हजारों वर्षांे से कृष्ण के पूर्वज ग्वाले ही थे । जिनका व्यवसाय ही गोपालन था। बडे गोपालक परिवार के पास हजारों गायें थी । छोटे ग्वाले के पास सैकडांे गायें थी। 



उस समय अर्थ व्यवहार के रूप में गाय का ही चलन था। यदि किसी वस्तु का आदान प्रदान किया जाता था तेा उस वस्तु की कीमत गाय कीमत से जोडी जाती थी। तब नगरीय राज्य व्यवस्था थी। छोटे छोटे ग्राम होते थे। कुछ सैकडों गांव की एक ही राजधानी होती थी। वहां का एक प्रशासक राजा होता था। गोकुल गांव मथुरा राज्य का हिस्सा था। और मथुरा के निकट था। वहां का शासक कंस था। जो कृष्ण का मामा लगता था। 

प्रत्येक गांव में गायों की इतनी बडी संख्या होने के बावजूद गांव का सभी दूध ,दही ,मक्खन मथुरा जैसे नगरों में बिकने के लिये चला जाता था। प्रत्येक गोपालक के पास गायों की इतनी बडी संख्या होने के बावजूद उनकी आर्थिक स्थिति बहुत विकट थी। वे अपना दैनिक व्यवहार पूर्ण करने के लिये घर का सारा दूध ,दही ,मक्खन नगरों में ले जाने के लिये बाध्य थे। गांवों में छोटे बच्चे को पीने के लिये दूध नहीं मिलता था। युवाओं को दही ,मक्खन नही मिलता था। उस घटना को पांच हजार वर्ष हो गये हैं। और आज हम देख रहे हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था की  आज भी वही स्थिति है। प्रातः पचास लीटर दूध डेरी में डालने वाला किसान आज भी हमारे भारत में खडा है। उसके बच्चे आज भी दूध के लिये तरसते हैं।सरकारें विकास की बात करती हैं। लेकिन देहात तो उसी अवस्था में खडे हैं। क्या इसे हम विकास कहेंगें़ ?  एक अति आधुनिक पशुपालन करने वाले एक व्यक्ति के फार्म में अस्सी गायें हैं। उनका पूरी व्यवस्था वैज्ञानिक पद्धति से चलती है। उन गायों को रोज कितना खिलाना है, क्या खिलाना है , क्या औषधी देना है । यह सब कंम्प्यूटर बताता है । दो पशु के डाक्टर रहते हैं। हर गाय की अलग अलग फाइल  कंम्प्यूटर में रखी है। गाय का दूध मशीन से निकाला जाता है। गोशाला का तापमान नियंत्रित करने के लिये एअरकंडीसनर लगे हैं। एक एक गाय बीस बीस लीटर दूध देती है। इस प्रकार वहां जाकर सर्वेक्षण करने पर जब उनसे पूंछा कि मुनाफा कितना होता है? तो उन्होंने कहा केवल गोबर ही मुनाफा बचता है। इस प्रकार प्रति गाय 20-25 लीटर दूध निकालने वाले गोपालक का शेाषण करने वाला मथुरा था आज महानगरों में बसी हुयी शोषण कारी व्यवस्था है। 

उस समय नेतृत्व कंस करता था आज बहुराष्ट्ीय कंपनियां कर रहीं हैं। लेकिन उस समय श्रीकृष्ण थे ,योगीराज कृष्ण भूखे प्यासे गोपालक पुत्रों के लिए एक आंदोलन चला दिया उन्होंने गोपालक पुत्रों का एक संगठन बानाया और देहातों से अपने सिर पर रखकर दूध ,दही , मक्खन ले जाने वाली माता ,बहनों को गांव के बाहर श्रीकृष्ण व उनके साथियों ने रोका उनके घडे छीनकर गांव के बालकेां व युवाओं को खिलाया। 

उन्होंने गांव के हर युवा को आदेश दिया कि घर में मंागने से यदि दूध,दही नहीं मिलता तो अपने घर में ही चोरी कर के भरपेट खाओ ।श्रीकृष्ण भी अपने घर में चोरी कार के माखन खाते थे। इसीलिये उनका नाम माखनचोर पडा। श्रीकृष्ण ने गांव के युवांओ को एकत्र करके व्यायामशाला में उन्हें शिक्षा दिलवाई ,उनकेा बलवान ,पहलवान किया उनकी एक संगठित सेना बनाई ।बाद में मथुरा पर आक्रमण करके राजा कंस का विनास किया। आज उसी आंदोलन की आवश्यकता पुनः हमारे गांवों केा है। यह आवश्यकता है कि ग्रामीण व्यवस्था नागरी व्यवस्था पर राज करे। 

श्रीकृष्ण ने जिस प्रकार ग्रामीण व्यवस्था को मजबूत किया उसी प्रकार से ’गो’ ’वर्धन’ से ’गोबरधन ’ यह भी नयी क्रांति का शुभारंभ करने वाले श्रीकृष्ण ही थे। जिसे हम पांच हजार वर्ष पहले की जैैविक क्रांति कह सकते हैं। उस समय पृथ्वी का लगभग 90 प्र्र्र्रतिशत् भाग रेगिस्तान को छोडकर जंगलों से ढका था। जनसंख्या बहुत सीमित थी। पशुपालन मुख्य व्यवसाय था। खाने के लिए जितनी आवश्यकता थी उतने ही क्षेत्र में फसलें की जातीं थी। जितना क्षेत्र अनाज के लिए चाहिये उतने ही क्षेत्र के जंगल काटे जाते थे। 

उस समय स्थलांतरित कृषि पद्धति थी। जिसमें छः या आठ बैल से चलने वाले हल से भूमि की जुताई की जाती थी। लाखों वर्षों से जंगल होने के कारण वह भूमि सेन्द्रिय पदार्थों से संपृक्त थी । उस की उर्वरा शक्ति सर्वोच्च थी।इस से उनको बहुत बडी मात्रा में फसल प्राप्त होती थी। भूमि इतनी उवर््ारा व समृद्ध थी कि उपर से कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं थी। जंगल काटी हुयी इस भूमि पर तीन वर्ष तक उपज लेने के बाद इस पर पुनः जंगल लगाकर छोड दिया जाता था। और फिर नया जंगल काटकर उस पर कृषि की जाती थी। इस प्रकार से यह चक्र चलता रहता था। 

गायों की इतनी संख्या होने के कारण उन सभी पशुओं का गोबर गांव के बाहर निश्चित स्थल पर रोज डाला जाता था। इसी प्रकार प्रतिदिन गोबर के बडे बडे पहाड खडे हो गये थे। यह गोबर के पर्वत थे, और गोबर धन होता है तो नाम हुआ गोबधर््ान पर्वत। उस समय भूमि उर्वरा होने से खाद का प्रयोग तो होता नहीं था। संयोग से उस वर्ष बहुत ही भयावह चक्रवात बंगाल की खाडी से उडीसा होते हुए मथुरा राज्य की ओर आया उस से इतनी तीव्र वर्षा हुयी कि पंद्रह दिनोें तक बरसात होती रही । 

यमुना नदी में भीषण बाढ आयी  उस वर्षा व बाढ से पूरी उर्वरा मिट्टी पानी में बह गयी । कृषि की बहुत हानि हुयी किसानांे के सामने एक बडी समस्या खडी  हो गयी थी। फसल कैसे हो गोकुल में यही चर्चा थी। युवा श्रीकृष्ण केा मालुम था कि संदीपन ऋषि के आश्रम में उन्होने जो गोबर के उत्तम परिणाम देखे थे उनके प्रयोग का समय आ गया है। उन्हें पता था कि देशी गाय के गोबर में भूमि को बलवान व सजीव बनाने के सभी तत्व स्थित हैं। कृष्णजी ने किसानों की एक सभा बुलायी तथा अपने विचार बताये योजना समझायी, उसका मर्म समझाया । 

किसान इस आधुनिक तंत्र विज्ञान को सुुुुुुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुए । क्योंकि खेत में गोबर डालना बिल्कुल नयी कल्पना थी। दूसरे दिन प्रातःकाल से पूरा गांव ये गोबरधन रूपी गोबर के पहाड खोदकर बैलगाडी में लेजाकर खेतों में डाल दिया। श्रीकृष्ण ने इस गोबर धन को उंगली तथा हाथों से उठाया था। उस समय से आज तक देशी गाय का गोबर खेत में डालने की परंपरा निरंतर चली आ रही है। 

जब हम किसी महापुरूष अथवा युगपुरूष को चमत्कारों के साथ जोड देते हैं तो उसके बताये मार्ग या उपदेशों से भटक जाते हैं। उनके मार्गदर्शन को भूल जाते हैं। योगीराज श्रीकृष्ण पूजा के नहीं अनुकरण के युग पुरूष हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इस महान कृृृति से भारतीय कृषि संस्कृति के एक नये अध्याय की नींव रखी।  

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