भारत में ज्ञात आंकडो के अनुसार क्रांतिकारियों की संख्या छः लाख से अधिक है, परन्तु मुझे लगता है कि यह वास्तविक आंकडे से बहुत कम है । भारत में क्रांतिकारी प्रेरक एवं बलिदान की स्मृति है। जिन्हे भारत में श्रृटि के अंत तक स्मृति चिन्ह के रूप में याद रखा जायेगा एवं वह अगली पीडियों के लिये प्रेरणा स्त्रोत बने रहेंगें । मै बचपन से ही भारत के महान क्रांतिकारी के विषय में सुनता आ रहा हॅू । वह मेरे एवं मेरे जैसे कितने युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं, इसकी कोई कल्पना नही कि जा सकती है । क्रांतिकारीओं की प्रथम पीडी 1857 से प्रारंभ होती है । जिसके रचेयता ब्रम्हा श्री परमपूज्य मंगल पांडे जी को माना जाता है । जिन्होने ईश्वर के दिये हुऐ प्राणो को इसिलिये त्याग दिया कि आने वाली पीडी को उसके आहार मे गाय का मांस न खाना पडे । उस युग में क्रांतिकारीओं का संबोधन पांडे कहकर किया जाता था । क्रांतिकारी केवल युवा ही हो सकते है यह बिलकुल असत्य है । क्रांतिकारी बनने एवं आयु का कोई भी संबंध नही है । कम से कम भारत मे तो यह बाबू कुवंर सिह ने चोरसी वर्ष की आयु मे एवं बहादुर शाह जफर सिद्ध करके बता दिया था । अब बात आती है कि स्त्रियां क्रांतिकारी बन सकते है कि इस बात का तो कोई भी आंखे मूंद का स्वीकार कर सकता है उदारण अगर दूं तो पुस्तक का एक बंडल तैयार किया जा सकता है । अतः मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि क्रांतिकारी बननेे किसी आयु या वर्ग विशेष होना योग्यता नही है ।
मै क्रातिकारी तो बनना चाहता हूॅ परन्त समझ में नही आता कि क्रातिकारी कैसे बनूॅ । मुझे लगता है कि आजादी के पहले क्रांतिकारी बनना बहुत ही आसान था बस बंदूक उठायी अंग्रेजो के विरोद्ध लो बन गये क्रातिकारी । उस समय क्रातिकारियों की आवश्यता थी । इसिलिये सरलता से कांतिकारी बन जाया करते थे । परन्तु इस प्रकार का तर्क देते हुऐ मुझे स्मरण हुआ कि स्वतंत्रता के पहले भी सब भारत जन क्रांतिकारी नहीं हुऐ अतः यह क्रातिकारी कुछ अनोखों एवं महापुरूष ही बन सकते है । यह सबके बस की बात नही है ।
फिर विचार आया कि क्या वर्तमान समय में क्रांतिकारियों की आवश्यता है । कई मित्रों से विमर्श करने पर उत्तर सकारात्क एवं हाॅ मे है । देश स्वतंत्र होने के बाद अब क्रांतिकारी क्यों बना जाये । प्रश्न का उत्तर तो बहुत ही स्पष्ट एवं सर्व ज्ञात है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार कांतिकारी बना जा सकता है । क्या इसके लिये किसी विश्वविधालय मे पाठयक्रम चलता है । किस पाठयक्रम को एवं किस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होति है । यह पाठयक्रम कितने वर्षो तक चलता है एवं इसकी पढाई पर क्या व्यय होता है। किस विश्व विध्द्यालय में इसके पाठ्यक्रम चलाये जाते है । वर्तमान समय में प्रत्येक कार्य के लिये पाठयक्रम चलाये जाते है । वास्तव में इस प्रकार के किसी पाठयक्रम के विषय में कभी सुना तो नही है ।
फिर अगला प्रश्न आता है कि इसका स्कोप क्या है इसमें मै कैसे अपना भविष्य सुरक्षित कर सकता हुॅ । क्रांतिकारी बनने के बाद मुझे क्या वेतन मिलेगा । क्या मे कभी उच्च प्राशासनिक पद पर पहुच पाउॅंगा। टी वी चलचित्र यंत्र पर देखकर मुझे लगता है क्या मै इससे प्राप्त होने वाले वेतन से अपना पंेसन प्लान एवं बच्चों के प्रीमियम भर सकॅूगा क्या । जैसे क्रिकेटरों के पास रूपयों की वर्षा होती है वेसै ही भी से धनवान व्यक्ति बन पाउगा। ऐसे न अनंत प्रश्न मेरे मन में हिलोरे मारते रहतें है ।
इन सारे प्रश्नों उत्तर मै न दूगा । वर्तमान क्रांतिकारियों की दशा अंगे्रजों के समय से भी अधिक दयनीय है । हमारा स्वतंत्र भारत का संविधान श्री भगत सिंह जी को क्रातिकारी नही मानता है । एक मंत्री श्री जय पाल रेडडी जी श्री विनायक दामोदर सावरकर जी का क्रातिकारी नही मानते है । नेता जी सुभाष चंद्र बोस की बेटी आज जर्मनी की नागरिक है भारत की नही है । उधम सिह जी जो जलियां वाला बाग का बदला हाउस आॅफ कामन में ले चुकें है । महात्मा गांधी को हमने केवल स्वार्थ के लिये बापू माना और कहा, इस देस का संविधान उन्हे बापू नही कहता है। अर्थात आप समझ सकते है कि स्वतंत्रता के पहले एवं पश्चात् क्रांतिकारियों को सिवाय कष्ट के कुछ प्राप्त नही हुआ है । तो फिर एक प्रश्न ओर आता है कि भारत में कोटि कोटि क्रांतिकारी कहां से उत्पन्न हुऐं है। उन क्रातिकारियों को नित नये विचारों से कौन सरावोर करता होगा। वे आज से 67 वर्ष पहले इतनी तीव्र अग्नि कहा से लाये एवं क्रातिकर स्वतंत्र भारत की ज्योति जलाने की च्येष्ठा की ।
यह तो माॅ भारती का प्रेम है कि जो किसी क्रांतिकारी बनने के लिये एक मात्र योग्यता है । यह बदले मे सम्मान, सुख, वैभव कुछ नही चाहता है । मात्र माॅ भारती के चरणों मे अपना जीवन न्यौछावर करना चाहता है । इनके लिये मृत्यु तो अंतिम सत्य होता है । जिसे ये लोग सहज की स्वीकार कर लेेते है । इसके बदले मे यह अपने परिवार के पेंसन की भी मांग नही करते है ।
हम सभी क्रांतिकारी बन सकते है बस थोडा स्वारूप बदल गया है । आपमें भी माॅ भारती का रक्त है जो चंद्र शेखर आजाद एवं नाना साहेब की धमनियों में बहता है । आप में भी उन्ही छः लाख क्रांतिकारियों की आत्माऐं है जो अब तक माॅ भारती के लिय प्राण न्यौछावर कर चुकें है मात्र आपको थोडी सी चिंगारी जलानी है वह महान आत्माऐं जागृत होकर खुद ही कंा्रतिकारी बन जायेंगी ।
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