Sunday, November 29, 2015

बालीबुड फिल्मों में शिक्षक का चित्रण एवं शिक्षक

आज का विषय वर्तमान समाज में शिक्षक की स्थिति को प्रदर्षित करने वाला है। या आप कह सकते है कि फिल्मों में बार बार शिक्षक का  अपमान  किये जाने से में आहत हॅू वह भी भारत देश् में जहां गुरूओ का स्थान ईष्वर से भी उपर है।
बहुत  ही प्रसिद्व फिल्म है जो कि राजकपूर के निर्देश्न में बनी हैं इस फिल्म का नाम है मेरा नाम जोकर कहतें है कि इस चलचित्र में बहुत ही गहराई है परंतु एक शिक्षक दृष्टि से यह फिल्म एक काला धब्बा है मुझे लगता है कि यह पहली फिल्म होगी जिसमें एक छोटे से लडके को अपनी वयस्क शिक्षका पर वासना भरी नजरों से देखता हुआ दिखाया गया है जिस देश् में शिक्षका को माता का स्थान दिया जाता है। क्या उस समय हजारो लाखों छात्रों के मन में इस चित्र का नाकारात्मक प्रभाव नही रहा होगा। क्या यह चित्र देखने बाद छात्रों के मन में शिक्षका के प्रति माता या बडी बहन के भाव रह पाये होगें। परंतु शिक्षक समाज द्वारा इसका विरोध करना बहुत ही दुखद है।
कुछ समय से   तो यह देखने में आता है जैसे फिल्मों में तो शिक्षकों को अपमानित करनें का वीणा उठा लिया है। इस प्रकार की फिल्मों में केवल छात्रों द्वारा शिक्षकाओं का वासना भरी नजरों से देखना सही बताया जाता है एव ंशिक्षकों को प्रताडित किया जाता है।  छात्रों द्वारा की गई हिंसा को सही दिखाया जाता है यह सारे अपमान फिल्म के हीरो द्वारा किये जाते है। क्या समाज में केवल इसी प्रकार उदारण देखने को आतें है। क्या शिक्षक अपना आत्म सम्मान भूल चुके है। जब इस देष का शिक्षक ही आत्म सम्मान खो  चुके है। तो आने वाली पीडी कैसे आत्म सम्मान की रक्षा कर पायेगी।
अभी बनी कुछ फिल्मों पर मै आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूॅंगाः
1. फिल्म का नाम है शमिताभ फिल्म में दक्षिण में स्टार धनुष, महानायक अमिताभ बच्चन,अक्षरा हसन आदि है। फिल्म की हीरो गंूगा है एवं वह कक्षा में जाता है शिक्षक उसे डांटता है वह शिक्षक को मारता है, बच्चे ताली बजाते है शिक्षक वहां से भाग जाता है। यही गूंगा बच्चा बाद में जाकर फिल्म का हीरो बनता है। एवं इसी बच्चे से बयस्क बने छात्र के लिये महानायक अमिताभ बच्चन उनकी आवाज देते हैै वह फिल्मों का बहुत ही बडा हीरो बनता है
संदेषः  इस फिल्म संदेश् जाता है कि अगर बच्चे या छात्र  शिक्षक पिटाई करे तो वह समाज में बहुत ही सम्मानीय स्थान पाता है।
2. फिल्म का नाम है हम्टी शर्मा की दुल्हानियां फिल्म में मुख्य कलाकार के तौर डेविड धवन सुपुत्र, आलिया भटट, आश्तोश् राणा है। फिल्म सीन है हम्टी  - फिल्म का हीरो शिक्षक को झूले पर लटकाता है एवं शिक्षक की भांजी छात्र को कहती है वह परीक्षा की कापी चेक करती है सबसे दयनीय स्थिति तब होती है जब फिल्म के अंत में इसी हम्टी लडके से शिक्षक की भांजी का विवाह होता है।

फिल्म समाज का दर्पण होती है।  यह दर्शक में मन में बहुत ही गहरा प्रभाव छोडती है बहुत सारी घटनाये फिल्मों में वास्तविक जीवन से जुडी होती है। छात्र जो फिल्म देखतें है वह फिल्म के उस हीरो जैसा बनना तथा दिखना चाहते है। इसके लिय छात्र एवं छात्राऐ ंनायकों एवं नायिकाओं के समान केश् संवारना, कपडे पहनना, जूत आदि धारण करतें है। चहरे पर लाली, बिन्दी आदि का प्रयोग करते है। यह मौलिक परिवर्तन जो फिल्म से आम जीवन तक आता हेै यह स्वीकार्य होता हैै  परंतु जब नकारात्मक चारित्रिक परिवर्तन फिल्मों से समाज तक आने लगे तो यह बहुत ही दुखदाई हो सकता है।

वर्तमान में फिल्में छात्रों का चरित्र हास एवं मानसिक हास का कारण बनी हुई है। जिसमें फिल्मों के नायक बहुत सारी बुराईयां होती है परंतु वह नायिकाओं का प्रिय होता हैं। वह शिक्षक एव शिक्षकाओं का अपमान करता है प्रताडना देता हैै परंतु वह अभी भी नायक हैै यही चरित्र छात्र महाविद्यालयों में अपनातें जा रहें है

समाज में शिक्षक का असम्मान पूरे समाज को नष्ट कर सकता हैै यह छात्र-अभद्रता महाविद्यालयों एवं िवद्यालयों से निकलकर आपके घर परिवार, विवाह कार्यक्रम, रास्तों एवं अन्य स्थानों पर पहुचतीं है। यह छात्र छात्राएं चित्रपट देखकर व्यवहार करते हैै। इस व्यवहार का प्रभाव उनके सम्पूर्ण जीवन मे होता है। मुझे उज्जैन की एक घटना याद आती है जब उज्जैन के विष्वविद्यालय में एक छात्र ने अपने ही शिक्षक के सर पर हाथ से मारा एवं उसके पष्चात् प्रध्यापक की मृत्यु हो गई, छात्र का राजनैतिक प्रभाव था वह कारागार से मुक्त भी हो गया क्या इस प्रकार का व्यवहार समाज में उचित हेै छात्र संघों के नेता शिक्षक पर हाथ उठायें, गाली गलौच करें एवं प्रताडित करें यह तो एक समान्य सी घटना हेै। जिसे शिक्षकभी बहुत निरसता से व्यवहार करता है एवं बगल में खडा पुलिस महकमा नौ दो ग्यारह हो जाता है। 

वर्तमान में शिक्षक का स्वाभिमान नष्ट हो चुका है शिक्षक केवल धन पिपासु बन कर रह गयें है। उनकी सारी क्षमताए केवल चर्चाओं तक सीमित हो गई है। क्योंकि जो स्वयं के सम्मान के प्रति जागरूक एवं एकजुट हों सके, वह समाज एवं छात्रों को देश् के लिये क्या एकजुटता एवं एकत्व का पाठ पढायेगा  फिल्मों में होने वाले भददे एवं अष्लील मजाको पर वह हंस कर उत्तर देता है एवं स्वयं को बहुत छोटा एवं हंसी का पात्र का समझता है। यह तो शिक्षक की विकृत मानसिकता या कहें गुलामी के लक्षण ही कहें जायेगे कि वह बार बार अपमानित  किये जाने पर भी  किसी फिल्म/नाटक  के हास्य अभिनेता की तरह व्यवहार करता है।

शिक्षक को स्मरण करना चाहिए कि  शिक्षको का इतिहास गौरवमयी है जब धनहीन द्रोणाचार्य ने अर्जुन, भीम, आदि महावीरो का निर्माण किया हमें स्मरण करना चाहिए परषुराम जी को जिन्होने कर्ण जैसे महादानी का निर्माण किया। हमें याद करना चाहिए ऋषि संदीपनी को जिन्होने कृष्ण जैसे राजनीतिज्ञ का निर्माण किया हमें याद करना चाहिए उस चाणक्य हो जिसके पास  शरीर में दो कपडे एवं मस्तक में खुली हुई शिखा  के अतिरिक्त कुछ नही था परन्तु जो बडे बडे राजा/महाराजाओं की सेना नही कर सकी वह केवल केवल एक शिक्षक ने किया और सिंकदर को भारत से लौटने पर विवश् कर दिया
क्या वर्तमान शिक्षक वर्ग स्वयं को चाणक्य का वंश्ज नही मानता जो बार बार किये गये अपमान पर गांधी के तीन बंदन बन कर बैठ गया हैै। किसी के देखने से, किसी के सुनने से और किसी के कहने से सत्य बदलता नही है। इस प्रकार अनीति कार्य करने के कारण ही षिक्षक अपना अस्तित्व एवं सम्मान खो चुके है।

चाणक्य
शिक्षक समान्य नही होता है प्रलय एवं निर्माण दोनो ही शिक्षक  की गोदी में खेलती हैै


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